एक झूठ और मैं
आज टेस्ट हुआ अर्थशास्त्र का मेरे स्कूल में। मुझे मैडम और बच्चे होशियार समझते हैं।
मगर हुआ यह, कि मेरा एक नंबर कम आ- गया मेरे एक दोस्त से, दोस्ती ज्यादा गहरी नही है । मगर मुझे वो होशियार समझता है। तो उसने मुझसे पूछा ” वरुण ;तेरे कितने नंबर आय!” मै बोला,”14।” वो बोला “मेरे भी इतने ही आए हैं।” अपनी परीक्षा की कॉपी दीखते हुए।मगर मैने नहीं दिखाया, उसने विश्वास कर लिया। और मै आगे बढ़ गया। एक-दो पिरियड गुजर गया तब एक लड़की आई और बोली वरुण अपना पेपर पर दिखा। तेरे कितने मार्क्स आए हैं?
मैने उसे अपना पेपर दे दिया। उसने मेरा पेपर राहुल के सामने खोला। ’13’वो बोला ये कांपी किसकी है? मैं सिर्फ झुकाए बोला “यार मेरी है।” उसके बाद उसने तो कुछ नही बोला।मगर आज शाम तक या कहूँ तो रात मे सोने तक यह मै अपने दिमाग मे सोचता रहुँगा।कि यार मेरे बारे मे वो क्या सोचेगा? मैंने झूठ क्यू बोला?
यह प्रश्न उसने तो नही किय मगर मेरा मन कर रहा है। मै उस टेस्ट पेपर को भी फाड़ चुका हूँ।
मगर मै इस बात को अभी तक नही भूल पा रहा हूँ! और इसके बारे मे ना चाहते हुए भी अभी-भी सोच रहा हूँ।
मै तो समझ गया, जितना सच्च बोलने पर वो ना हँसता, उससे ज्यादा मै खुद पर हँसा हूँ, झूठ बोल के!
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