कोहली:- एक दौर
धोनी-रोहित-अश्विन मेरे फेवरेट टीम इंडिया में । कोहली बिल्कुल तो नहीं मगर हां पसंद नहीं थे ।
उनका वह अग्रेशन-गालीबाजी और वह रवैया मुझे बिल्कुल पसंद नहीं। रूड और घमंडी मानता।
मगर वक्त पर वक्त की परत चढ़ती गई। और वह मुझे अच्छे तो नहीं मगर हां जचने लगे।
मगर बात आज उनकी यह नहीं कि मुझे पसंद है या नहीं। क्योंकि राय सबकी अपनी-अपनी होती है।
मगर मेरे लिखने की वजह आज उनका टेस्ट कप्तान के तौर पर अलविदा कहने के बाद
जैसा हम सभी जानते हैं,
विदाई तो हमेशा दुखोत्पादक होता ही है।
चाहे हम पसंद करते हो या नहीं, हमें लोगों के जाने का आंसू ना सही तो एक आह आता जरूर है।
और यह तो बात है 7 सालों के खट्टे मीठे एहसांसों के दौड़ का। कभी वह सेंचुरी के बाद दहाड़ का,
या विकेट के स्पीकर पर ब्राॅडकास्टर से बहस का। या अपने या टीम के लिए अंपायर से लड़ जाने वाले हौसले का।
एक शांत-कूल माइंडिड टीम का जो लड़ना जानती थी, मगर सुनाना नहीं। उसको सुनाना सिखाने वाला,
वह जिन्हें कभी कोई भी टीम कुछ भी बोल देती तो सुन लेने वाले। भले ही खेल से जवाब दे देने वाले।
मगर उन्हें बल्ले-गेंद के साथ-साथ आंखों में आंखें डाल कर, जुबान पर थोड़ी करवट रखकर लड़ना सिखा देने का वह शुरुआत।
जिसने एक शांत-सहनशील देश को आक्रामकता के साथ खेलना सिखाया। धोनी का उत्तराधिकारी धोनी के काम के विपरीत काम करने वाला।
कोहली! वो दौड़ जिसने फिके पड़ते क्रिकेट के सभी फाॅर्मेट में से एक टेस्ट का पिछड़ते जाने के सिलसिले को आगे लाने का।
यह दौर आसान नहीं था धोनी के दीवानों के देश का उन पर कोहली का रंग चढ़ना आसान कहा था।
मगर सब हुआ और अंत पर भी पहुंचा। मगर हमने क्या सीखा? बदलना तो प्रकृति है।
मगर कुछ ना सीखना हमारी बेवकूफी होगी। हमने यह सीखा की विदाई दुखदाई होता है।
अरे! मजाक मत कर यार। यह तो पहले ही पढ़ लिया। तो दूसरी बात:-
लोग अपने आपको आपके अनुसार बदल लेंगो अगर आप कोशिश नहीं अमल करोगे तो।
जैसे धोनी ने सब को शांत किया और लोगों ने कुछ बवाल के बाद अपना लिया।
और फिर माही-माही-माही को उसके व्यवहार को इंडिया की धड़कन मान लिया।
फिर आया कोहली धोनी का उत्तराधिकारी धोनी के व्यवहार के विपरीत। लोगों को बिल्कुल पसंद नहीं आया ।
लोगों ने कहा घमंडी है। अकरू है। अपनी काबिलियत पर घमंड है। जेंटलमैन के गेम को जेंटलमैन रहने नहीं देगा यह।
अंपायरों ने डांट लगाया। पूरे देश ने इस पर विरोध जताया। मगर पूरे देश को जवाब देना; चाहे जमीन किसी की भी हो,
गलत को गलत उसी वक्त कहना। अपनों के लिए यह नहीं देखना कि आपके साथ क्या होगा।
किसी से भी भिड़ जाने का यह हौसला सिखाने वाला। टेढों को सीधा करने वाला।
पूरे देश ने उसे बदलने को सोचा मगर कुछ सालों में पूरा देश उसकी तरह बदल गया।
बस अपना साथ मत छोड़न दोस्त। कुछ साल तुम तड़पोगो। मगर उसके बाद दुनिया तुम्हारे लिए तड़पेगी।
जैसे सोने को आग में जलाया जाता है, मगर जब वह बनकर तैयार हो जाता है।
तो लोग उसे पाने के लिए ललचाए रहते हैं ।
7 सालों का यह सफर और भी कई अनगुंजे है इसकी गोद में।
मगर यह एक अनगुंज ही काफी है सभी के लिए।
खुद पर विश्वास करना सीख फिर तुझे नहीं रोक सकता है। कभी नहीं !
बस खुद के साथ खड़े रहना सीख!
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( कोहली:- एक दौर )
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