कठपुतली:आजाद हो गई
एक कठपुतली सपने मे थी।सोय-सोय कही खो रही थी।वह उठी और घर से निकली,उसके धागे कटे पड़े थे।
वो अपने पैरो पर खड़ी थी।अब वो आजाद थी।वो अपने मन की छंद छू-सकती थी।
वो जो चाहे,वो कर सकती थी।वो सबसे पहले गई अपने सहेली दूसरी कठपुतली के पास।
और उसे देखकर हँसकर बोली,तु अभी-भी बंधी पड़ी है और मुझे देख मुझे मै अपने पैरो पर खड़ी हूँ।
चल मेरे संग चल।अपने यह धागे काट दे और मेरे सहारे पूरी दुनिया घुमने चल।
वो बोली नही-मै-नही जाऊंगी। मेरी नियती मे यह नही लिखा है।
फिर यह कठपुतली अपने बाकि दोस्तो के पास गई। मगर सबने मना कर दिया।
फिर वो उन सब पर हँसी और खुद ही घुमने का फैसला किया।
वो निकली और थोड़ी देर मे पहुँच गई एक खेत मे। वहाँ एक बिल्ली सो रही थी।
इसने सोचा क्यो ना इसके साथ मजाक किया जाय। बड़ा मजा आयेगा।
वो गई और बिल्ली को परेशान करने लगी।बिल्ली उठी और इसको खाने के लिए दौड़ी।
और यह डर गई और डर के मारे,इधर-उधर भागने लगी।
वो कैसे भी करके अफरा-तफरी मे बिल्ली से बचने के लिए एक बनिये कि दुकान मे घुस गई। वो बिल्ली से बच गई।
मगर उसको यह मालूम ना था,कि जिसके दुकान मे यह घुसी थी,वो कितना कंजूस था।
यह भागते-भागते थक गई थी। और भूख भी लगी थी,तो चुपके-चुपके उसका समान खाने लगी।
मगर बनिये का कान था बड़ा तेज।उसने वह अवाज सुनी और ईधर-उधर देखने पर पाया
कि एक कठपुतली उसका समान खा रही है। उसने उस कठपुतली को पकड़ लिया।
और पकड़ कर एक रस्सी से बांध दिया।उसके सामने फिर अपनी आजादी का सवाल खड़ा हो गया।
वो बहुत उदास हो गई और चिल्ला पड़ी मै दुबारा ऐसा ना करूंगी,बिना पूछे किसी का समान ना छुऊंगी।
कृपा करके मुझे आजाद कर दे।मगर बनिया था एक नंबर का कंजूस ।
उसने एक शर्त रखी देख मै तुझे तभी छोडूंगा जब तु मेरा एक काम करेगी।
वो बोली काम क्या है बोलो मै सब करने को तैयार हूँ।
वो बनिया बोला कि देख मेरे दुकान मे एक चूहा आता है
और मेरा सबकुछ बिगाड़ कर चला जाता है।
तुम्हे उस चूहे को पकड़ वाने मे मेरी मदद करनी होगी वो तैयार हो गई तो बनिया ने उसे आजाद कर दिया।
वो जैसे ही अच्छा अवसर पाती है।भाग निकलती है। वो भागती है तो पहुँचती है सिध्दे सब्जी-मंडी मे।
वो ईधर-उधर घुम रही थी।तभी उसको लगा कि वो दबने वाली है।उसने उपर की ओर देखा तो पाया।
कि वो एक आदमी के पैर से कुचलने वाली है। सो उसने जल्दी-जल्दी मे एक बड़े की ओर भागी।
और जाके उसमे छूप गई। कुछ देर बाद दो लोग आय और उस बोडे को उठा शहर कि तरफ चल पड़े।
जब वो शहर पहुँचे और बोड़ी नीचे रखा।वैसे ही वो कठपुतली बाहर निकल आई।
यह जगह बिल्कुल नई थी।बड़े-बड़े दुकान,माॅलस,बिल्डिंग्स। सबकुछ बड़ा था।नया था।
उसे लगा अब उसके जान को कोई खतरा नही है।सो वह एक माॅल मे घुस गई।
और शेर करने लगी।उसकी नजर स्कैंलेटर पर पड़ी।
वह स्कैंलेटर पर चली मगर उसको स्कैंलेटर पर चढना नही आ रहा था।
जैसे-जैसे स्कैंलेटर अपने अंदर लुप्त या मिलने जा रहा था।
वैसे-वैसे उसको लगने लगा कि वो उसके अंदर जाके मर जायेगी।
स्कैंलेटर बिल्कुल पास पहुँच गया था।वैसे ही वो चिल्ला उठी बचाओ।
लेकिन उसको कुछ नही हुआ था।वो सपना देख रही थी।
उसने उठते ही देखा कि क्या उसके हाथ-पैर मे धागे है।
जब देखा कि धागे लगो हुए है ,तो उसने चैन की साँस ली।
उसके दोस्त उसके पास आय और पूछने लगो।बोल क्या हुआ?
तुम चिललाई क्यो?वो बोली नही बस एक बुरा सपना देख रही थी।
और कुछ नही।हम ऐसे ही ठिक है।मै आशा करती हूँ कि हमारे हाथ-पैर धागे से ही बंधी रहे।….वरूण
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