वो पुराने दिन
सीखना तो चाहते हैं पर समय नहीं है। और क्या पता पैसे आए या ना आए।
अपने आज को आज की तरह खर्च करें।क्योंकि जो आप आज है वह आपके कल की देन है।
~~~~~~~~~>Meri Kitabe <~~~~~~~~~
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !
अपने आज को आज की तरह खर्च करें।क्योंकि जो आप आज है वह आपके कल की देन है।
~~~~~~~~~>Meri Kitabe <~~~~~~~~~
कि हम आलसी इसलिए हो जाते हैं क्योंकि:- हमारे पास कोई मकसद नहीं होता
पेड़ उस शाख को गिरा देता है- जो उसे लगता हैं कि अब फल नहीं दे सकता।और उस डाल को सहते रहता है- चाहे कितना ही भारी क्यों ना हो- जिस पे फल लगता है।
हमें बिना किसी मकसद के हर काम में- कठिनाई दिखती है-पर एक मकसद के साथ हर कठिनाई एक नई सिख लगती है।
यह किस्सा भी नाइंथ क्लास से स्टार्ट होता है। इनका चित्र और चरित्र बिल्कुल अलग है, सबसे हटके।
शांत स्वभाव-चेहरे पर संतुष्टि का भाव-उमंग और पढ़ाने की जिज्ञासा से भरपूर।
पता नहीं इनमें ऐसी कौन सी अद्भुत शक्ति है जो बिना डाट के पढ़ाती है
तो उस पूरी की पूरी क्लास एकदम मौन रहती है।मौन! जबकि जो टीचर मारते हैं
उनकी कक्षा में भी शांति नहीं होती। जितना इनकी कक्षा में होती है। पर इसका मतलब यह नहीं है, कि वोमारती नहीं है।
शांत स्वभाव रखती है। हमेशा एक संतुष्टि का भाव रखती है। लेकिन जब कुछ गलत देखती है
मेरी मुलाकात भी इनसे कुछ इसी अंदाज में हुई थी। दरअसल हुआ यह था कि पेपर्स हो रहे थे
और इनका पेपर सबसे पहले हो गया था। और ये उन्हें जल्दी से चेक भी कर दी थी।
और उन्होंने यह ढूंढ निकाला कि मेरी और मेरे दो और दोस्तों कि पेपर में सेम माक्स है।
तो इन्होंने हम तीनों को कक्षा के बाहर बुलाया और अपने अनुसार दंड देने लगी।
पहले कान खिंचे- फिर गाल और फिर थप्पड़। यह सही बात है जब मनमोहन को करीब से देखा
और ज्यादा था वरना तो मुझे बहुत शरीफ लगती थी।
यह बहुत ही अलग किस्म की अध्यापिका है। यह हमें पढ़ाने के लिए मोटिवेट भी करती है और
यह भी कहती है कि सरकारी नौकरी ही सब कुछ नहीं होता अगर आप छोटा-सा कोई कर सकते हो
आप लोगों को नौकरी दे सकते हो तो वह भी बहुत बड़ी बात है। मुझे बहुत पसंद है
और दूसरी बात यह है कि यह अपने काम में कभी भी आना-कानी नहीं करती ।
इन्होने पीएचडी का रखा है और इनका भाषण बहुत ही मस्त और आसान होता लगता है।
जब भी किसी समारोह बोला यह बोलती है।तो ऐसा लगता है कि
जैसे सरस्वती मां स्वयं इनके जुबान पर विराजमान हो चुकी है।
और उस वक्त भी सारे बच्चे चुप हो जाते हैं। भगवान की लीला के समय भक्त।
कबीर साहब कहते हैं:– कि पानी की बुंद अगर सांप के मुंह में पड़ती है तो विष बन जाती है, और वही अगर सीप में गिरे तो मोती। उसी प्रकार मनुष्य है, जैसी संगति करता है-वैसा हो जाता है!.. |
ठिक ऐसा ही यहां हुआ जैसा कि मैंने आपको बताया था, हमारी अंग्रेजी की अध्यापिका भले ही नहीं पढ़ती हैं-पर दोस्ती सबसे बड़े आसानी से कर लेती है। इनकी दोस्ती अंग्रेजी की अध्यापिका से जम गई। तो हुआ यह की इन्होंने भी पढ़ना तो जारी रखा पर , वो पहले वाली बात नहीं रह गई। पर वो जब सच में पढ़ती तो मन रम जाता। मगर इनका यह कारवां एक-दो साल चला और हम सब कहते रहे की यह भी अंग्रेजी वाली अध्यापिका की तरह होती जा रही हैं। मगर फिर जब उन्होंने अपने आचरण में आई तब फिर से समा बांधा और पढ़ाने लगी और कैसे हम बारहवीं के अंत पर आ गया ये एहसास ही नहीं होने दिया इनके पठन-पाठन ने।
बड़ गहराई से सोचती है और अध्ययन करती हैं। इनके बारे में क्या लिखूं एक यही है स्कूल भर में जिनका मैं और मेरे दोस्त कभी ज्यादा मजाक नहीं बनाते।
(धन्यवाद)
और सीखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाये
1..नई अनगुंजे (पार्ट-2) हमारे इतिहास के पन्नों के अध्यापक
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2..नई अनगुंजे (पार्ट-1) हमारी अंग्रेजी की अध्यापिका
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5..लाख बीमारी का सिर्फ एक इलाज 👉
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1..हाथ जोड़ ली – और शक्ति छोड दी : समझ ज़रूरी है! (Hindi Edition) Kindle Edition
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2..अंधेरों का उजियाला (Hindi Edition) Kindle Edition
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3..जिंदगी – पाप और कर्म (Hindi Edition) Kindle Edition
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हिन्दी कि अध्यापिका
हिन्दी कि अध्यापिका
“कि नेवर जज अ बुक बाय इट्स कवर“
पार्ट-3 के साथ जल्द मिलते हैं।तब-तक पढ़ी जावा- पढ़ी जावा!….
अतीत के पन्नों का अध्यापक
अतीत के पन्नों का अध्यापक
एक बात बतानी थी आप सभी को, मैं आज से एक नई श्रृंखला प्रारम्भ कर रहा हूं।
जिसमें मैं अपने अध्यापकों के कुछ किस्से बताऊंगा। इस आशा से कि उनकी किस्सों से आपको कुछ काम का मिल जाए।
बिना अध्यापक के ज्ञान नहीं होती। और इसमें मैं अपने अध्यापकों के कुछ किस्से बताऊंगा जिससे शायद आप कुछ सिख पाओ।
क्योंकि अध्यापक की बातें हो या दिनचर्या हर चीज सिखा सकती है।
वो जो लड़की दिख रही हैं ना। पहली बार देखी है। सोच रहा हूं पटा लूं। क्या पता इस बार सच्चा प्यार मिल जाए। कुछ और कहा उसने।
हम आगे बढ़े और काफी आगे बढ़ आए। यह बात हुए 1 दिन बीत चुका है। मैंने लड़की तो सही से नहीं देखा था।
मगर सुना शायद बहुत गहराई से था जो इतने गहरे उतर आई है कि अभी तक याद है।
सच्चा प्यार, खूबसूरत चेहरा, काफी उम्दा ख्याल है।
मैं प्यार को तो नहीं जानता। मगर अपने दोस्त को जानता हूं, दूसरी क्लास से और
अभी बारहवीं के फरलरी में पहुंचने वाले हैं, इतना जानता हूं।इसके बहुत सारे किस्से हैं।
गैर से खैर और फिर बगैर होने की। इसी सच्चे प्यार की तलाश में।
इसने पहली गर्लफ्रेंड तब बनाई थी। जब मेरे को यह भी मालूम नहीं था, कि मैं क्या पसंद करता हूं? क्या नहीं?
जब चाहे लड़की हो या लड़के। सारे सिर्फ एक ही कैटेगरी में आते थे, कानी उंगली से दोस्ती और कट्टा कह के दुश्मनी।
यह बातें चौथी और पांचवी कक्षा की है, जब हमारे नाक बहते रहते थे, कपड़े मैले होते थे और लंच में भागने के सिवाय –
डंडा ही है जो सही से पता था। तब से सच्चे प्यार की तलाश में हैं। सच्चा प्यार यह शब्द उसने उसे उम्र में तो नहीं कहा था।
बस बताया था कि मुझे उससे प्यार है।
खैर!हमें क्या था। हम तो उस उम्र में सिर्फ लड़का हो या लड़की उनके संबंध को, दोस्ती ही समझ पाते थे।
इसका यह किस्सा जो उसके साथ शुरू हुआ, समय के साथ, कक्षाओं के संग बदलता गया।
मैंने देखा है इसका वो छठी कक्षा से पायल- तो कभी कान का (बाप के पाॅक्ट से चुराय पैसों से) फेरीवाले से खरीदकर,
जून की छुट्टियों में चुपके-चुपके रोते हुए।
कक्षा में बोर्ड से ज्यादा और पढ़ाई से बड़ा अपने प्यार को देखते और पढ़ते हुए।
मैं दूर से ही उससे जुड़ा था। पर फिर भी काफी दूर था।
इसकी मोहब्बत आसमां में सूरज-चांद- मौसम जो भी कहो के साथ बदलते रहे हैं।
कई किस्से हैं सच्चे प्यार की तलाश कि। वह गेट के पीछे अपने कमरे के,
उसका नाम लिखना-ब्लेड से हाथ पर उसके अक्षर का शुभ शुरुआत लिखना
या लड़की का नंबर पा , जब खुद का मोबाइल नहीं होता था,
तो उसका नाम पापा के फोन पर दिल लगा के अनाॅन लिखना।
मगर वह अनाॅन इतना नाॅन था; कि पूरे स्कूल को इनकी कहानी पता थी।
खैर इतना तो हम भी जानते हैं प्यार छूपता नहीं है, चाहे हम इस क्षेत्र के नौसिखिया हो या बच्चे ।
क्योंकि हमने ये खेल जो भी समझो खेला नहीं।बस देखा है।
इसके हर सच्चे प्यार का वह रंगीन और खुशहाल शुरुआत और अंत हर रचनाकार की मोहब्बत की तरह।
मगर प्यार में सब जायज है ना। इसलिए यह सब करता है।
घर पर एक, गली में 3, स्कूल से घर तक के साथ के लिए किसी लड़की का साथ, ऑनलाइन में 10-15 मगर हर काम होने के बाद भी काम पूरा ना होना।
मुझे समझ में नहीं आया उसके प्यार का चक्कर। बड़ी खूबसूरत है।
मगर मुझे इसे और भी कइयों को देख के यह पता चला कि:-👇
सच्चा प्यार रेगिस्तान की मृगतृष्णा है या राधा-कृष्णा!
खोजना नहीं पड़ता। मिल जाते हैं। मगर बहुत ज्यादा करीब जाने पर निर-रहित तलाब हो जाते हैं।
सच्चा प्यार वह मृगतृष्णा है जो आपको अपने पास बुलाता है। हर बार बुलाता है। आपको भगाता है।
और जब आप थक के, हार जाते हैं। और जब आप थक के हार जाते हो ।टूट चुके होते हो।
सबको मृगतृष्णा समझते हो। तब वह सच्चा नदी दिखती है। जो आपका हाथ पकड़ती है।
पर आपको उन मृगतृष्णाओ के कारण इसे भी मृगतृष्णा नहीं समझना होता है।
बल्कि उनको भूल के इस में डूब जाना होता है। सच्चा प्यार खोजना नहीं पड़ता,
सच्चा प्यार आपको मुसीबत में नहीं देख सकता।
उस वक्त जो आपका हाथ पकड़े। उन मृगतृष्णाओ से अच्छा है। अगर रेगिस्तान में ठहरा गंदा पानी ही मिल जाए तो।👇
मगर उसको अपनाना भी होगा फिर उसको छानना होगा। फिर ग्रहण करना भी आपको ही पड़ेगा।
सच्चा प्यार वक्त के फल जैसा है-
जब-तक खुद पक्का के गिर नहीं जाता-
तब-तक मिठास नहीं दे सकता !….
*********( Meri Kitabe )*********
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2..अंधेरों का उजियाला (Hindi Edition) Kindle Edition
3..जिंदगी – पाप और कर्म (Hindi Edition) Kindle Edition
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(सच्चा-प्यार)
(सच्चा-प्यार)
(सच्चा-प्यार)
और सच भी था। जहां आम आदमी के 10 से 15 साल कभी-कभी बाल सफेद हो जाते हैं
सफलता पाने में और वह जिस भी क्षेत्र में हाथ रखता सारे काम एकदम सोना हो जाते।
उसका हाथ पारस पत्थर समझा जाता था। शेरहोल्डर्स-इन्वेस्टर-सारे उसकी आईपीओ में पैसा लगाने को बेताब रहते।
बचपन से हर काम में खुशी मिलती थी।जो भी छूले हीरा हो जाता था। अमीर खानदान का था।
मां लक्ष्मी का आशीर्वाद उसके सिर पर था। और शादी भी हो गई उसके प्यार से।
और शादी के 10 साल तक उसके चार बच्चे हो चुके थे। सब खुश और सिर्फ खुश रहते ।
कोई गम नहीं था क्योंकि कुछ भी काम नहीं था। ना पैसा-ना व्यापार-ना परिवार और ना शरीर।रहीश थे, समाज में मान-सम्मान था।
बच्चों की स्कूल लाइफ ही शुरू हुआ था अमेरिका में और खत्म हुआ कैम्ब्रिज में। वहीं लंदन में ही शादी कर ली। वहीं रहने लगे। थे
भारत-भारत में करते क्या? उनके पापा थे ना। और कोई दुख थोड़ी था, उनकी फैमिली को, उनके सारे बच्चों को नशे की लत थी
सब काम पैसे से प्यार से सही समय पर हो जाते। तो किसको किसकी जरूरत होती।
सारे भाई-बहन अपने दुनियां में रहते। और राहुल यहां अपने काम में व्यस्त और मस्त रहता।
बिजनेस मैन था, लड़कियों की कमी थोड़ी थी। बीबी भी अपने में रहती।
राहुल ने उसे फिल्म उद्योग का प्रोड्यूसर बना दिया था।वो उसमें बिज़ी रहती।
कभी हफ्ते में घर पर मिल लिए तो ठीक, ना तो फोन पर तो हर रोज बात होती ही थी।
भले ही मुश्किल से कुछ मिनट, मगर होती थी। क्योंकि सबको पता था सब कुछ अच्छा ही होगा।
और सबकुछ अच्छा होता था तो बात ही क्या होती।
क्योंकि सबको पता था सब कुछ अच्छा है। और रही बच्चों की बात तो वह तो दारु ड्रग्स और विलायती शादी के दीवाने थे।
फोन पर बात महीने में करते । क्योंकि कुछ जरूरत ही नहीं थी। और माता-पिता का विश्वास, की सब कुछ अच्छा होगा।
और रहीस थे। तो बच्चों पर ध्यान नहीं दिया। सब कुछ अच्छा था। मगर वक्त ढलता गया। उनके बाल सफेद होने लगे थे।
डाई तो खैर करते। मगर डाई सिर्फ आवरण ढकते है- प्रकृति नहीं। वो बूढ़े हो चुके थे।
क्योंकि उसकी बीवी को पता चल गया था उसके अफेयर्स के बारे में।
रोज मन-मुटाव होता, बाकि सब कुछ अच्छा था। डाइवोर्स लेने की सोची, मगर कैसे भी करके एक साथ रहने लगे।
बुढ़े हो चले थे, बच्चों की याद आती। तो उनके यहां चले जाते। मगर बच्चे घर कभी आते-कभी नहीं भी आते।
आते भी तो रात के ढाई 2:00 बजे और पड़े रहते बिस्तर पर दोपहर के 12:00 बजे तक।
क्योंकि गम नहीं था। सब अच्छा था। कभी गम देखा नहीं था। और किसी भी चीज की कमी नहीं थी।
बूढ़े मां-बाप वापस आ गए।
अभी-भी सब कुछ था अंदर नहीं बाहर ! अंदर सिर्फ खालीपन था।
उनकी लाइफ कभी-भी राॅयल थी। पार्टीश में जातें- मुस्कुराते।
मगर खिलखिलाते नहीं। एक वक्त अब ऐसा आ-गया था। उनसे अब चला नहीं जाता था, मगर मशीन तो थी।
मगर बच्चे खुद नशें के कारण किसी और ही दुनिया में रहते थें। जहां इस दुनिया से कोई रिश्ता नहीं था।
उनके अंतिम संस्कार में एक बेटी एक बेटा पहुंचा तब तक 2 दिन बीत चुके थे।
पुलिस ने पोस्टमार्टम कर शव को रख। रखा था। आए तो अंतिम संस्कार किया गया।
मगर इतने खुशहाल लोगों ने खुद को गोली मारी क्यों? यह सबूत पुलिस जुटान में लगीं।
सभी दोस्तों से पूछा सबने बोला सब अच्छा था। किसी की इन्हे जरूरत नहीं थी।
अरे इनका बिजनेस तो और प्रगति पर था। पार्टी इसमें तो हर रोज आते थे। रात 12-02 बजे तक जाते थे।
वहां से पुलिस को हाथ लगा, ‘सब कुछ अच्छा था’। काम वालों-असिस्टेंट से पूछा गया।
अफेयर्स के मामले सामने आए, मगर वह तो बहुत पहले ही सॉल्व हो गए थे।
और उन्होंने ने ही तो फैसला लिया था। साथ रहने का। घर के काम करने वाले दाइयों-कुकश से पूछा गया,
तो पता चला सब अच्छा था। मगर साहब और मैडम नींद की पांच से छ: गोलियां रोज खाते थे।
शराब बहुत पीने लगे थे। रात को भी घर पर लेट से आते थे। वह पार्टी साहब। बेटे-बेटियों को फोन करते थे।
तो वह उठाते नहीं थे। उठाते क्यों सब अच्छा था। हमसे बातें भी बहुत करते थे और पता नहीं उन्होंने खाना कम कर दिया था
गई थी कइ छोटी-छोटी खुशियों से उनके होंठ ऊपर तक नहीं उठते थे। मगर पता नहीं फिर भी खुद को क्यों मार लिया।
सब कुछ तो अच्छा था। अच्छा तो उनके बच्चे कहां थे?
वह क्या है ना साहब, सब बचपन से ही लंदन में रहे हैं। वहीं पर रहते थे।
वह तो वहीं पर थे। तो वह क्यों नहीं आए थे, उसी दिन ?
वह क्या साहब वह फोन नहीं उठाते । नशे में रहते हैं इसलिए उन्हें पता ही नहीं चलता।
और साहब दो बच्चों का एक्सीडेंट हो गया था ऐसा हमें साहब-मैम की मौत के बाद पता चला ।
पता नहीं साहब सब तो मुस्कुराते थे। सब अच्छा था पैसा-बंगला-गाड़ी सब बड़ा था।
पता नहीं क्यों बुढ़ापे में यह कदम क्यों उठाया? पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा ।
ऊपर से सब कुछ अच्छा भरा था। बस अंदर खाली रह गया था, आपने जो नहीं थे बात करने को। समझने को।
बीवी को पति पसंद नहीं था। पति को बीवी। और बच्चों का यह दुनिया ही नहीं था।
उनकी दुनिया कहीं और थी जाहां सब कुछ था बस गम नहीं।
क्योंकि जोड़ने का काम गम करता है। जो उनके संसार में था ही नहीं। और ऐसा वक्त अब तक रहेगा- यह भी तो नहीं मालूम।
थोड़ा गम आना जरूरी है मित्रों!….
अपनों में छूटे गौरों का पता चल जाता है:- हम थोड़े और मजबूत हो जाते हैं।
पर दुआ करता हूं:- भगवान तुम लोगों को खुशियां दे। और गम में साथ!…
(धन्यवाद)
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1..जिंदगी – पाप और कर्म (Hindi Edition) Kindle Edition
2..भगवान और इंसान:- 5 कहानियां : शिक्षाप्रद जो हर किसी को एक बार अवश्य पढ़नी चाहिए (Hindi Edition) Kindle Edition
*************^Meri Kittabe ^*************
(😊😊सिर्फ खुशी-😓😓गम नहीं!)
(😊😊सिर्फ खुशी-😓😓गम नहीं!)
(😊😊सिर्फ खुशी-😓😓गम नहीं!)
अपरिचित राहों पे तो वीर ही बढ़ा करते हैं, परिचित राहों पर कायर ही तलवार-चमकते है!….नेपोलियन बोनापार्टरामायण-महाभारत-वेद हजार,
सब का है यही ज्ञान-की राहे कठिन
अक्सर उन्हीं के होते हैं:-
जो महान बनने वाले होते हैं,
राम का 14 वर्ष का वनवास, उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाया,
पांडवों का 12 वर्ष का जंगल वास और अज्ञातवास,
उन्हें कृष्ण का साथ,
और धर्म का संस्थापक बनवाया,
मुश्किलें सदैव-महान बनाने आती है,
तोड़ने नहीं,
तुम्हें-तुम्हारी पहचान बताने आती है,
मुश्किलों का सामना करो ।
हो सकता है घबरा जाओ ,
चीजें बद से बदतर हो जाए,
मगर याद रखना तराशे गए पत्थर ही,
पूजने योग बनते हैं!…
बस तुम्हें धैर्य रखना होगा। असंभव कुछ भी नहीं, मगर उस ‘अ‘ को हटाने के लिए,
तुम्हें पहले अपने अंदर की आशंका को हटाना होगा।
बाहर एक मिथ्य-नगरी है- शेर डरावना होता है-कुत्ते वफादार। क्या यह तुम्हें कुत्तों ने खुद बताया या शेरो ने तुम्हें।
कभी तुम्हें या तुम्हारे आस पड़ोस में किसी को कुत्ते ने काटा है- अच्छा जितना ज्यादा कुत्तों ने हमें काटा है,
क्या शेरों ने काटा है, नहीं। नहीं-ना। फिर भी वह ज्यादा खतरनाक कैसे हो गया, कुत्तों से भी ज्यादा।
क्योंकि हमारा तो कभी जंगली शेर से सामना भी नहीं हुआ।फिर भी हम कैसे मान लेते हैं।
क्योंकि हमें बचपन से बताया गया है, कि शेर अपने शिकार को नहीं छोड़ता।
याद रहे शेर का भय शेरों ने नहीं इंसानों ने दिया है।
वे तुम्हें बताते है कि शेर खतरनाक है। वहीं दूसरी तरफ देखो तो कहते हैं महाराणा ने शेर को निहत्थे धूल चटाई थी।
याद रहे!
भय दुर्बलता भी है और वीरता भी। बस यह उस इंसान को दिखाना होता है कि, असल में वह कौन है।
भय हमेशा चुनौती लाता है। विनाश का नहीं बल्कि दोनों का। कुछ अलग कर जाने का और वही दब के मर जाने का भी।
कठिनाई-डर-चुनौती है। और हम नरों का यह कर्तव्य है कि हम इसे भले ही कड़वा लगे पर पिये, यानिकि अपनाए।
क्योंकि भय के सिवा कोई और तुम्हें निर्भय नहीं बना सकता है। भय ही तुम्हें निर्भय बनाता है और कायर भी।
ठीक उसी प्रकार कठिनाई/प्रेशर तुम्हें बनाती भी है और मिटाती भी है। तैयार रहें। जीत अवश्य होगी।
बस होशियार और समझदार बने। जिंदगी उतनी बुरी नहीं। गलत उतना गलत नहीं।डर-डर नहीं।
वहम का खेल है। चुनौती स्वीकार करना हम नरों की पहचान है।
जब शेर हिरण के झुंड में हमला करता है, तो उसे ज्यादा भागने की जरूरत नहीं होती।
क्योंकि वह खुद ही के साथियों को धक्के मार-मार कर खुद को बचाने के चक्कर में लात से कचार के पीछे छोड़ देते है।
वहीं शेर जब गाय या भैंस या हाथियों के झुंड में हमला करता है। तो पिटा के आता है।
इसका मतलब यह नहीं कि वह जानवर शेर से डरते नहीं। बस उसे अपने जाने के लिए मारते हैं,
क्योंकि उन्हें पता होता है कि अगर हमने नहीं लड़ा तो वैसे भी वह हमें खाएगा। इससे अच्छा है कि इससे लड़ लिया जाए।
चुनौतियां एक हैं मगर कलेजा अलग-अलग-वर्ना क्या सैकड़ों हिरनों का एक समूह एक शेर को नहीं भगा सकते।
बस फर्क सोच का है। समस्या को देखने का है।
वर्ना हर बुद्धिमान इंसान जानता है, कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। और जो आसानी से मिल जाए उसमें मजा नहीं है।
मुश्किलों का स्वागत करो। वह तुम्हें बनाने आई है। मगर खामा- खा मत भीड़ जाना मुश्किलों से।
लेकिन वह आए तो मत भागना क्योंकि जिंदगी मौके अक्सर मुश्किलों के कवर में ही छुपा कर गिफ्ट करती है।
वरना मर्यादा पुरुषोत्तम ना होते अगर चुनौतियां विशाल ना होती। पांडव जीवित नहीं बच पाते अगर वनवास उन्होंने भोगा नहीं होता।
क्योंकि वनवास ने उनको, उनके अपने शक्तियों से परिचय करवाया। उन्हें लड़ने का एक वजह दिलाया।
वनवास ने रोज-रोज की दुर्व्यवहारों से छुटकारा पाने का मार्ग प्रशस्त किया।
बेज्जती ने महाभारत और महाभारत ने ‘गीता’ प्रदान किया।
अपनाना-भी पड़ता है!… |
अवसर अक्सर मुश्किलों के गिफ्ट बॉक्स में ही पैक होते हैं। तब तक नहीं दिखते जब-तक वो खोलो नहीं जाते।
और खोलने के लिए पहले उन्हें अपनाना भी पड़ता है।। मुश्किल एक चुनौती है:-
स्वीकार करना हमारा कर्तव्य,
मुश्किल हमें बनाने आती है,
तो उनसे भागो नहीं वर्ना हीरनो की तरह खुद के पैरों तले ही कुचले जाओगे।
********_Meri Kitabe_********
1..अंधेरों का उजियाला (Hindi Edition) Kindle Edition
2..आत्म-शक्ति! (Hindi Edition) Kindle Edition
3..जिंदगी – पाप और कर्म (Hindi Edition) Kindle Edition
********_Meri Kitabe_********
कठिन- रास्ते।
कठिन- रास्ते।
मैं नया-नया पौधा था। शब्दों की जमीं से जुड़ा। मुझमें नय-नय अंकुर फुटे थे।
मुझे लगा मैं बहुत अच्छा लेखक बन सकता हूं,
तो उसके लिए मैंने फेसबुक/ इंस्टाग्राम पर अपने शायरी से संबंधित कुछ, पेजों को फ्लो कर लिया।
और इनके साथ-साथ कोरा और जहां हो सके उन सभी वेबसाइटो को चलना शुरू कर दिया।
ताकि मैं लोगों के पास पहुंच सकूं और लोग मेरे शेरों-शायरी को लाईक कर मेरा आत्मविश्वास बढ़ा सकें।
मैंने खुद का भी पेज बनाया इंस्टा/फेसबुक-कोरा और पिंटरिस्ट वगैरह पर।
और लगा मैं डेली एक-दो करके शायरी-कहानी और उसके साथ-साथ कविताएं को डालने उन सभी जगहों पर।
और एक लंबे अंतराल तक यानिकि चार-पांच सप्ताह तक,
मैं डालता गया और जो एक चीज जो मैंने ध्यान दिया वो यह ताकि जो पोस्ट
मैं अपने पेज पर डालता उस पर सिर्फ दो-तीन लाईकश आता ।
और वही पोस्ट अगर मैं फेसबुक ग्रुप/कोरा ग्रुप या इंस्टाग्राम पर कोई डालता तो
वहीं पोस्ट लाईकश के मामले में सेंचुरी लगाई लेता और कभी-कभी डबल सेंचुरी भी छू लेता।
वहीं सेम पोस्ट। तो मैं समझ गया कि कहीं मुझमें नहीं, लोगों की समझ में है।
क्योंकि मेरे पेज पर शायरी-लवर्स नहीं थे। जिस कारण वो मेरी लिखी बातों को नहीं समझ पाते
और जो समझ पाते या जिन्हें अच्छा लगता सिर्फ वही दो-चार लोग ही लाइक करते।
मगर वहीं पोस्ट हाजारों शायरी-लवर्स के ग्रुप में पोस्ट करता तो 💯 से ऊपर लाईकश मिलते।
तो मैं अपने पेजों के साथ-साथ ग्रुपश पेजों पर डालता रहता।
मगर एक बात और देखी मैंने कि जिन ग्रुपश को मैंने फ्लो किया था।
उसी से interested ग्रुप्स अक्सर फेसबुक और इंस्टाग्राम मुझे मेरे फिड पेज में दिखाते।
तो मैं यह देख कर हैरान होता कि उन ग्रुप्स पर मेरे वाले ग्रुप्स (जिन-ग्रुपश को मैंने फ्लो किया था) से ज्यादा लोगों ने लाइक किया है।
और कमेंट्स भी हाजारो में। तो मैं भी उन को लाईक कर देता और उन पेजों को फ्लो कर पोस्ट डालने लगता।
मगर कोई फायदा हाथ नहीं लगा, वहीं सौ-से-दो सौ के बीच ही लाइक करते वो भी मेरे किसी-किसी पोस्ट को।
लेकिन औरों के पोस्ट को वहीं लोग (उसी-ग्रुप) के हाजारो-लाखों लाईकश देते।
तब मैं निराश होने लगा था। तभी एक चीज और जिस पर मेरा ध्यान गया वह कि मेरे जो खुद के पेज थे FB/Insta पर,
उनमें से कुछ पोस्ट पर 20-30 लाईकश आते जबकि बाकि सभी पर 2-3 ही मुश्किल से आते।
जगह बदलने से खरीदारों की संख्या में कमी या बढ़ोतरी होती है।
आप खुद एक बाजार हो जातें हैं। और खरीदार अपने-आप आते हैं।
वर्ना अगर सिर्फ खरीदार के पास भटकोगो। तो खरीदार तो आयेंगे, मगर बाजार सिर्फ आप नहीं होंगे।
इसलिए खुद को रोज-रोज अपडेट करते रहे, अगर सबसे टॉप पे या सबसे अलग पहचान बनानी है तो। वर्ना भटकते रहे।
कुछ ही मिलेंगे, इधर-उधर भटकने से, मगर वो महानतम, तब तक नहीं मिलेगा।
जब तक तुम उसके काबिल नहीं बन जाते।
इसलिए खुद को महान-से- महानतम की ओर ले-जाओ। खरीदार खुद आ जायेंगे!….
और सीखने के लिए नीचे दिए गए लिंक को दबाये
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2..रिश्तों में दरार कैसे आ जाता है ?
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4..लाख बीमारी का सिर्फ एक इलाज 👉
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—– @ मेरी किताबें @ ——
1..अंधेरों का उजियाला (Hindi Edition) Kindle Edition
— @ —
2..आत्म-शक्ति! (Hindi Edition) Kindle Edition
— @ —
3..खुद डूबो – खुद सिखो (Hindi Edition) Kindle Edition
—– @ मेरी किताबें @ ——
जीवन बदलने का मंत्र
जीवन बदलने का मंत्र
वह जिन्हें कभी कोई भी टीम कुछ भी बोल देती तो सुन लेने वाले। भले ही खेल से जवाब दे देने वाले।
मगर उन्हें बल्ले-गेंद के साथ-साथ आंखों में आंखें डाल कर, जुबान पर थोड़ी करवट रखकर लड़ना सिखा देने का वह शुरुआत।
जिसने एक शांत-सहनशील देश को आक्रामकता के साथ खेलना सिखाया। धोनी का उत्तराधिकारी धोनी के काम के विपरीत काम करने वाला।
कोहली! वो दौड़ जिसने फिके पड़ते क्रिकेट के सभी फाॅर्मेट में से एक टेस्ट का पिछड़ते जाने के सिलसिले को आगे लाने का।
यह दौर आसान नहीं था धोनी के दीवानों के देश का उन पर कोहली का रंग चढ़ना आसान कहा था।
मगर सब हुआ और अंत पर भी पहुंचा। मगर हमने क्या सीखा? बदलना तो प्रकृति है।
मगर कुछ ना सीखना हमारी बेवकूफी होगी। हमने यह सीखा की विदाई दुखदाई होता है।
अरे! मजाक मत कर यार। यह तो पहले ही पढ़ लिया। तो दूसरी बात:-
खुद पर विश्वास करना सीख फिर तुझे नहीं रोक सकता है। कभी नहीं !
बस खुद के साथ खड़े रहना सीख!