किस्मत की तलाश में 🤲🤲🤲
किस्मत की तलाश में 🤲
“यह वही शोर है-ना जिसके मारे हम सब हैं, किस्मत मेरी अच्छी कहा इसी-रोग से पीड़ित हर नर है।”
भाग्य को कोसने का रिवाज बहुत पुराना है। पर भाग्य खोजे जाने का दौर आज-भी जारी है।
पर मैं यहां बात तब की करूंगा, जब मानव आदिवासी था- बोलना सीखा था
और एक जगह से दूसरी जगह प्रस्थान जारी था।
एशिया के किसी जंगल में बड़ी संख्या में आदिवासी रहते थे। वो जंगल उनको जान से प्यारा था।
पर क्या करें बेचारे सब जंगल छोड़ने पर विवश हुए थे। किसी प्राकृतिक आपदा या किसी बीमारी के कारण।
तो इन के मुखिया ने सबसे पहले इन सब को लेकर एक नए जंगल में पहुंच गए थे।
और वहां बसने से पहले अपने कई सालों के ऐसे निरर्थक प्रयासों से वह हताश हो,
एक सभा बुलाई थी। मुद्दा एक ऐसे जगह की खोज करने की थी।
जहां जाकर आदिवासी स्थाई निवास कर सकें। अधनंगे पूरे शरीर ढक सके-हर मौसम की मार सह सके
और सबसे जरूरी अन्न उत्पन्न कर सके।
क्योंकि एक जंगल से दूसरे जंगल भटकने में ही सारी उम्र घट गई थी इन आदिवासियों की।
और हर जगह इनकी जनसंख्या परिवर्तित होती रही, किसी-न-किसी वजह से।
तो मुखिया ने चार मंडल बनाया और उस में किसी न किसी को सरदार घोषित कर दिया और भेज दिया नई जगह की तलाश में।
सब दल निकल गए उत्तर-पूर्व-पश्चिम- दक्षिण दिशा में, फैल गए। सभी दल को यह आदेश था
कि जैसे ही वह जगह मिल जाए तो फॉरेन मुखिया को इत्तिला किया जाए।
उत्तर कि तरफ जो दल गया उसका नाम भोनू था, पूर्व के मुखिया का नाम सोनू था,
पश्चिम के सरदार का गोलू और दक्षिण का रोहू। भोलू का दल जोश में रोज के झंझट को खत्म करने की उम्मीद में उत्तर की ओर अग्रसर था।
पर जगह अनजानी थी- नई जगह थी और नए वन्यजीव। समस्या तो आनी थी।
यज्ञ में आहुति तो जरूरी होती है। सोई हुआ इनके साथ। कुछ सांप के काटने से मारे गए-कुछ मौसम की रुसवाई से-
तो कुछ घर से जुदाई के कारण तो कुछ भटक गए नई जंगल होने के कारण।
इससे भोनू काफी घबरा गया और जितने बचे-खुचे लोग थे उन्हें समझाया कि देखो,
भाग्य हमारे साथ नहीं है ।उसे यह बिल्कुल भी पसंद नहीं कि हम यहां पर आए हमारे सारे साथी मारे जा रहे हैं
और तो और जो जो बचे-खुचे हैं उनका भी कोई भरोसा नहीं। इसलिए हमें वापस लौट जाना चाहिए।
सरदार के पास, वर्ना ना जाने हमारे साथ आगे क्या होगा? भाग्य हमारे साथ दे या ना दे?
और भोनू वापस लौट के सरदार के पास तो सरदार ने पूछा क्या हुआ तो- भोनू ने बताया कि उत्तर रहने योग्य नहीं।
दक्षिण में रहू काफी आगे बढ़ा पर उसकी भी एक सीमा थी और वह भी उस सीमा से आगे
जनपद ना बना सका अपना और घोषित हुआ कि दक्षिण यमराज का द्वार है। यह राह खतरनाक है।
बचे सोनू और गोलू । गोलू काफी हद तक आगे बढ़ा हर मृत्यु को उसने आहुति समझी पर वह भी
इतना आगे नहीं बढ़ पाया या नहीं बस्ती बसा सका तो घोषित हुआ पश्चिम भी नर्क का द्वार है।
और वह भी उसके आगे नहीं बढ़ पाया और घोषित हुआ कि पश्चिम भी नर्क का द्वार है।
बचा पूर्वंचल चलो, यहां रहने का कोई जगह मिला। सोनू ने सरदार को इत्तिला करवाया।
जब-तक तीनों के दिशाओं के मुखिया अपने दल के साथ लौट चुके थे। तब यह पहुंचा।
सरदार को खुशी हुई और सारा दल पूर्व की तरफ आगे बढ़ा। सोनू को रास्ता पता था
तो वह ग्रुप नेतृत्व कर रहा था और सोनू को पूर्वांचल में पहुंचकर काफी अचरज हुआ,
इस बात पर कि इस बार पहले जितने भयानक मार नहीं पड़ी। वन्य जीव से भी बच गए आखिर यह हुआ कैसे?
पूर्वांचल काफी फैला था, पास में नदी और रहने लायक काफी खुली और अच्छी जगह थी।
रात को जश्न का माहौल बना मुखिया के पूछने पर गोलू,भोनू और रोहू बोले सरदार,
सोनू की किस्मत अच्छी थी, और हमारी बहुत बुरी।
उसके बाद फिर बाकि दिशाओं को जानने का फैसला और फि
र पश्चिम में भी लोग रहने लगे, दक्षिण यमराज के राज्य में लोग राज करने लगे। उत्तर भी रहने योग्य हो गया।
हारने वालों का जवाब फिर वही था। इस बार किस्मत ने इनका साथ दिया क्योंकि पिछली बार भी तो लोग गए थे। पर वह सफल नहीं हुए-ना।
और आज ना पश्चिम खुश हैं-ना दक्षिण-ना पूर्व और ना-ही उत्तर।
हर जगह के लोग, बस यही कह रहें हैं कि हम अमेरिका में होते- तो कोई जपान-तो कोई दुबई में होना चाहता है-
तो कोई अंबानी के घर में पैदा होना चाहता है। और हर कोई नहीं तो आधे-से-ज्यादा किस्मत को कोस रहे हैं।
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !