बुराई का जन्म !
सनातन – शाश्वत- ब्रह्मा – विष्णु – महेश। त्रिदेव सृजन, पालन और सर्वनाश के आधार।
जब सब कुछ ही तीनों से है , तो यह जो बुराई है। रावण – कंस-दुर्योधन या साधारण इंसानों में थोड़ा –
बहुत वह कैसे पनपता है ?
जब जन्म उसी से – मिलन उसी से – मरन उसी में।
तो यह बुराई पनपती कहां है? और पहली बार पनपी कब ?
हम सच्चाई तो नहीं जानते पर जानने का प्रयास , तो कर ही सकते हैं।
क्योंकि जो हमारे पास है:-वक्त, उसे कहीं-ना-कहीं तो खर्च करेंगे ही,
तो क्यों ना इसे किसी बड़े चीज की खोज के लिए प्रयोग करें। असफल भी होंगे तो क्या होगा ?
कम-से-कम खुद पर गर्व होगा। किसी बड़ी चीज के लिए प्रयाश करने में। तो चलो जानने का प्रयास करते हैं।
ब्रह्मांड का निर्माण त्रिदेवों यानी सत्य से हुआ। संपूर्ण ब्रह्माड उन्हीं के हिस्से हैं। हम सब में भगवान हैं –
यह हम सब जानते हैं। लेकिन उस भगवान ने जब जीवन दिया अपने अंश को और उसकी यह स्मृति –
समझ मिटा दी कि – वह उनका अंश है। यह उन्हीं में मिलकर शाश्वत होगा –
परम शांति को प्राप्त होगा। तो इससे क्या हुआ कि उस अंश ने जब खुद को जानने की कोशिश की –
समझने की, तो उसे समझ में आया होगा कि हम सबको एक दिन यह जिंदगी जी के मर जाना है।
पर उसने जब सोचा, कि ऐसा क्या करें कि मरना ही ना पड़े! और अगर मरे भी तो श्रेष्ठ और परम शांति मिले।
तो वह इस ख्वाहिश में जीवन के कर्म और मर्म को भूल गया।
अब वह इसलिए अपने जीवन के समय को व्यर्थ करने लगा कि अपने अमर होने का वरदान ढ़ंग सके –
और अमृत ना मिले तो मरने पर परम शांति मिले और मरने से पहले वह पूर्ण हो जाए। इस सोच से बुराई पनपी।
क्योंकि यह तो भगवानों का अंश था और यह परम आनंद और शांति को उन्हीं में पूर्णता से मिलकर प्राप्त कर सकता है –
ना कि, जो अंश है उसको पूर्ण करने के गलत प्रयाश से।
क्योंकि घर तो एक ही दिशा में होता है। और सही वक्त पर उस दिशा को नहीं पकड़ोगे –
तो भटके हुए ही कहलाओगे और यही उनके साथ हुआ। वह निकल गया जो – उसे मिला था।
उसको संपूर्ण करने के लिए। उसके परम शांति की व्यवस्था करने के लिए या –
उसके शाश्र्वता के लिए या उसके संपूर्णता को शरीर के साथ जुड़े ढूंढता रहा।
वह भटकता गया और भी अधिक दूर होता गया अच्छाई से- शाश्वत से। वह दूर होता गया।
वह मेहनत तो कर रहा था वक्त भी लगा रहा था। पर उसको ना अमृता मिल रहा था –
ना परम शांति का मार्ग (मिलता कैसे उलटी दिशा में जो उसे ढूंढ रहा था)उसका हर एक कदम विफल होने लगा।
उसके अंदर का संयम खत्म होने लगा। उसको यह एहसास होने लगा कि यह जिंदगी व्यर्थ है।
इस शरीर में जीना बस कुछ पल है। इससे वह अपने शरीर के लिए कुछ क्षण में पूर्णता को पाने के लिए जीने लगा।
उसको उसी उतने समय में संपूर्णता – शांति और अमृता चाहिए था। पर गलत दिशा ने ना उसको कभी-भी संपूर्णता दिया और ना ही शांति।
क्योंकि एक घर का सदस्य भटक जाए तो वह सदस्य तब तक चैन से सुकून से नहीं जीता।
जब-तक उसे अपना घर वापस नहीं मिल जाता। पर वह अपना कर्म और मर्म भूल गए।
वह संपूर्णता को – अमृता को, आनंद को जहां मर्जी – वहां ढूंढने लगा।
पर हकीकत यह थी कि उनके हर कदम ने उसे विफलता दी।
क्योंकि शांति तो वापस घर यानी कि प्रभु के अंदर ही लौटकर मिलेगा।
पर वह मरना नहीं चाहता था और सारा आनंद भी पाना चाहता था।
उसी क्षण में संपूर्ण गागर भरना चाहता था। और उसी छोटे से अंश में –
आदिशक्ति को पाना चाहता था। और जो कुछ शक्तियां उसे मिली –
उससे वह भी संभाली ना जा-सकी। क्योंकि शक्ति को केवल शाश्र्वत ही संभाल सकता है।
वहां से बुराई – आज-तक है।
और आज भी संपूर्ण शांति को – गलत वस्तु के साथ जोड़कर गलत दिशा की ओर बढ़ रहा है।
उसकी मंजिल तो आसमान है – पर वह खोद जमीन रहा है।
पर उसका हर एक कदम पर असफलता मिल रहा है। जो उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचा रही है ।
जिसकी पूर्ति के लिए वह कभी सीता हरण कर रहा है – तो कभी द्रौपदी का चीरहरण की कोशिश।
ताकि भले ही अमरता ना मिले पर मान की भरपाई तो हो सके।
और वक्त के साथ-साथ यह और भी बंधन में बंध गया। वह शुरु-शुरु में तो ढूंढने गलत दिशा में –
गलत चीज के साथ – संपूर्णता निकला था। पर अब वो उसमे इतना खो-गया है कि,
अब उसके सामने कुछ अन्य ही सवाल खड़े हो गया है। जैसे मान-सम्मान की भरपाई का सवाल।
जिससे वो और भी अधिक त्रस्त हो गया है। और अब वह परम आनंद की जगह – क्षणिक आनंद को ही –
निरंतर प्राप्त करना चाहता है। जो उसे और भी ज्यादा दूर और दुष्ट कर रहा है।
पर जैसे भटके हुए के ना मिलने पर घर वाले भी चैन से नहीं बैठते हैं।
ठीक इसी प्रकार जब परमेश्वर देखते हैं – कि उनका अंश काफी भटक गया है।
अब वह इससे वापस लौट नहीं सकता। तब वह खुद उसको लेने आते हैं।
पर वह उसे उसे शरीर के साथ नहीं ले सकते क्योंकि वह कई विषयों से जुड़ा था।
इसलिए वह उस माध्यम का वध कर प्रकाश का अनावरण करते हैं। और जो उनका अंश होता है।
उसको वापस उसी में मिलकर संपूर्णता देते हैं। इसीलिए रावण को राम –
कंस को कृष्ण मारने के लिए हर युग में जन्म लेते हैं। क्योंकि संपूर्णता के बिना आनंद क्षणिक है।
और शक्ति सिर्फ शाश्वत के लिए ही नियंत्रण में रहती है।
और एक बात याद रहे कि बुराई रहेगी, क्योंकि रास्ते कई है।
भीड़ बहुत है। लोग गलत दिशा में भटकते रहेंगे। और जब वह नहीं लौट सकने वाले होंगे –
तो वही घर बना – बनाकर रहने लगेंगे। तब परमब्रह्मा को आना ही होता है। और वह आएंगे ही।
और आते रहेंगे क्योंकि संपूर्णता बाहरी नहीं – आंतरिक होता है। और अमरता भी इसी प्रकार बाहरी नहीं –
आंतरिक होता है। और उसके लिए अंदर की ओर मुड़ना पड़ता है।
और जो नहीं मुड़ पाते – उन्हें मोड़ने के लिए शाश्र्वत को स्वयं सामने आना पड़ता है।
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