तस्वीर : एक सिख
मुझे मालूम चला कि वो मर गया । तो मै उसके घर पहुंचा। मगर पहुँचा तब-तक लाश जल चुकी थी।
तो।सिर्फ और सिर्फ तस्वीर मिली उसकी दीवार पर टँगी हुई।
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लोग वो भी मिले मुझे अश्क बहाते हुए अपने, उसकी तस्वीर के सामने जो सिध्द मुँह बात भी नही किया करते थे उससे।
हे राम !
वो कितना अच्छा आदमी था।उसने किसी का क्या बिगाड़ा था! जो इतनी जल्दी ऊपर ले गय उसको।
मैने पहली बार उसकी तस्वीर को सीने से लगाकर रोते लोग देखे थे।
उन्हे देखकर मुझे लगा कि हाँ यार वो मै जितना समझता था उससे ज्यादा अच्छा आदमी था।
मै भी वही नीचे बैठ उसके बारे मे सोचने लगा।उसका वो बात करने का तरीका,
चलने का ढंग और उसका वो बालो का स्टाइल सब मुझे आज कुछ सबसे अलग और प्यारा लग रहा था।
हजारो गलतिया मालूम थी मुझे उसकी मगर ना-जाने आज मुझे वो बहुत अच्छा इंसान लग रहा था।
लोगो कि बाते सुना वो कितना अच्छा आदमी था ना।बेचारा!
अपने काम से काम रखता था और ना ज्यादा टाँग अड़ाता था, मगर हकीकत मे वो ज्याद टाँग अडाता था।
यानिकि वो लड़ाई बहुत ज्याद करता था।मगर आज उसकी गलतियाँ कम कैसे हो रही है – यही सोच रहा हूँ मै।
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ना वो उतना अच्छा था – ना ज्यादा शरीफ था।जितना की लोग आज बता रहे थे और राम को कोस रहे थे।था तो वो भी हरामखोर बिडी-सिग्रेट-गुटखा-शराब और बीबी को मारने और लड़ने मे आगो। और इसी वजह से पड़ोसी भी ना मुँह लगाते।मगर आज अचानक पड़ोसी छोड़ो जो रिश्तेदार उस गली की तरफ देखते भी नही थे वो आज आके तस्वीर को उसके गले लगा रहे थे।यह दृश्य ने मुझे और भी द्रवीत कर दिया और मुझे लगा की मैं गलत सोच रहा हूँ।”मुझे माफ करना राम, मै शायद ज्याद गलत हूँ उससे।” मगर हकीकत यह बिल्कुल भी ना थी। मगर उस वक्त वहाँ बैठे मुझे यही लग रहा था। कि वास्तव मे हमारे विचार गलत है वो नही।ऐसा क्यो हो रहा था। यह मैने सोचा तो पता चला कि मै पहली बार:-
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पूर्ण इंसानो के बीच इंसान बन बैठा था।तभी उसकी तस्वीर आज वो करा बैठी जो कभी वो ना करा पाता।
शायद यही इंसानो की कीमत है।तस्वीर बन जाओ तो लोग इंसान बनते है !…वरूण
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !