अर्थहीन :- सबसे बड़ी शक्ति
इस सृष्टि में अर्थहीन क्या है? संपूर्ण सृष्टि ! कैसे और क्यों ? मैं ऐसा कह रहा ,हूं वह ऐसे की पृथ्वी
और इस संपूर्ण सृष्टि को कहीं जाना नहीं है। वह शिवांश हैं यानी जो कुछ नहीं है उसके अंश।
मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं कि वह चाहे श्री हरिश्चंद्र हो,श्री राम हो, श्री कृष्ण हो या हो बुध –
महावीर या ब्रह्मा हो, रावन हो, या हो कंस। वह सब पृथ्वी पर रचे और बसें गए चरित्र थे।
जो कि जीवन क्या है ? और जीना कैसे हैं? कि मार्गदर्शक थे – और हैं। पर कभी भी सृष्टि,
इनके सृष्टि पर होने या ना होने से ज्यादा प्रभावित नहीं हुई ।वो जैसे पहले थी वैसे ही है –
बस उसका आकार बदला है – स्वभाव आज भी वैसा ही है। संसार को अर्थ की जरूरत नहीं है।
संसारिकता को भले ही हो सकती है। अर्थ मानव के लिए है।
पशुओं को कोई अर्थ नहीं है पक्षियों को कोई अर्थ की आवश्यकता नहीं है।
हनुमान को अर्थ की जरूरत थी नहीं-बल्कि वह संपूर्ण जीवन अर्थहीन रहे।
उन्होंने कभी भी भक्ति के अलावा कुछ और नहीं मांगा – ना किया।
भक्ति भी उन्होंने किसी अर्थ के लिए नहीं किया। सूर्य को निगल गए बिना अर्थ के,
राम ने जीवन में कभी यह निर्णय नहीं लिया था कि वह संपूर्ण सृष्टि का या अयोध्या का राजा बनेंगे।
पर हकदार होते हुए भी – उन्होंने पिता की बात मानी बिना तर्क के क्योंकि तर्क और कुतर्क हमेशा अर्थ के साथ आते हैं।
श्री कृष्ण की गीता अमर इसलिए है क्योंकि वह, ‘कर्मण्य वाधिकारस्ते मा फलेशु कदाचना‘ का पाठ देती हैं।
देखिए जब तक अर्जुन अर्थ के साथ थे तब तक श्री कृष्ण उनके रिश्तेदार मात्र थे- साथी मात्र थे।
लेकिन जब वे अर्थहीन हुए कृष्ण उनके सारथी थे।
बुद्ध ने महल छोड़ा अर्थ को लेकर लेकिन तब तक वह सिर्फ सिद्धार्थ रहे जब-तक वह अर्थ सहित थे।
लेकिन जैसे ही वह अर्थहीन हुए वह बुध बन गए।
पृथ्वी अर्थहीन है वायु – अर्थहीन है – अग्नि अर्थहीन है – जल अर्थहीन है – आकाश अर्थहीन है।
पृथ्वी जब चाहे हिल जाती है – कई प्राणि उसके तल दब जाते हैं। पर उसको कोई पाप लगते देखा या
– सुना है। कभी वायु जब चाहे तूफान बन जाता है – कई अर्थ को अर्थहीन बना देता है।
पर उस पर भी कभी लाच्छण लगते कभी देखा है। तूफानों – बवंडरों को आदमी नाम देता है।
और उसके कम नाम लेने लग जाते हैं। पर वायु का सदैव नमन करते हैं। पानी जब चाहे बाढ़ लाता है –
और गंगा फिर भी पूजी जाती है। अग्नि अर्थव्यवस्था की व्यवस्था भस्म कर देती है -
फिर भी उसका यज्ञ में प्रयोग होता है। आपने सोचा इनको पाप क्यों नहीं लगता है।
चौकी पार्क और पुण्य सदैव अर्थ के साथ जुड़े होते हैं। अर्थहीन ना -पाप होता है ना पुण्य वह सिर्फ एक साधन मात्र होता है।
जो महान होता है। वो ना-ही सबसे ऊंचा होता है और ना ही सब से निम्न वह जो होता है – बस वह होता है।
और ना ही इनको किसी का प्रयोग करना होता है
किसी उद्देश्य मात्र के लिए भी क्योंकि अर्थहीनता को किसी भी चीज से अर्थ नहीं है।
रावण बुरा था ज्ञानी होने के बाद भी दुर्योधन की जंघा 20 सौ भाइयों कर्ण भीष्म
और भी कई अभाव के बाद भी जानते हो क्यों क्योंकि उनके कर्म के साथ जुड़ा था
किसी का अपमान का तो किसी का सम्मान का कुरुक्षेत्र जहां पर ना जाने कितने रक्त है
वह प्रदर्शन स्थल है जानते हो क्यों क्योंकि वहीं है इसलिए बदनाम नहीं है
बल्कि विख्यात है चांद जो पृथ्वी पर जल को कंट्रोल करता है नियंत्रित करता है
वह ज्वार भाटा के कारण बड़ी मात्रा में भूमि को अर्थव्यवस्था को जलमग्न करता है
सूर्य जो जीवन दाता है वह भी मरने युक्त रश्मिया देता है वह सब फिर भी पूजे जाते हैं
क्योंकि वह सब अर्थ ही नहीं उनको कुछ और नहीं हो जाना है वो जो है
बस उनको वही रहना है इसमें उनका कोई अर्थ नहीं है
इसलिए चंद्रमा सूर्य पूछे आवाज पसंद किए जाते हैं
इसी प्रकार को कोई राजी नहीं चाहिए था ना उन्हें धर्म की आलोचना करनी थी
वह धर्म के संस्थापक थे जो कि अर्थहीन है क्योंकि धर्म कुछ और नहीं क्रिया का प्रतिफल है ।
और क्रिया कभी-भी अर्थ सहित नहीं होती है क्योंकि क्रिया की मनसा अर्थ सहित होती है।
हम वर्तमान का उदाहरण ले टाटा कंपनी को कोई प्रॉफिट नहीं चाहिए उसे कहीं पहुंचना नहीं है।
लेकिन वही अंबानी को प्रॉफिट चाहिए उसको कुछ और हो जाना है। इसलिए ध्यान से देखिएगा,
जब रतन टाटा फैसले लेते हैं तो भारतीय आलोचना नहीं करते और अंबानी के अगर एक बार भी
कुछ कर दें तो लोग, मीडिया स्पेशल न्यूज़ बना देती है ।टाटा को देश की सेवा करना चाहती है
उसका अर्थ है सेवा अर्थहीन होता है अर्थ वह कर्म होता जिससे किसी चीज की प्राप्ति की जाती है
पर सेवा वह कर्म होता जो की अनुभूति होती। और अनुभूति कभी भी अर्थ का मर्म नहीं रही है।
पर फिर भी आप देख सकते हो कि लोग टाटा कंपनी पर भी केस इस करते हैं
क्योंकि भले ही उनका अनुभूति कर्म नहीं है लेकिन उनकी कंपनी के साथ जो लोग जुड़े हुए हैं –
वह अर्थ सहित होते हैं। हर सेवा अर्थहीन होती है जैसे वन – समुंद्र – नदी या पृथ्वी – सूरज की ।
और अगर आप देखेंगे तो इस पूरे जीवन में अधिकांश मनुष्य दुखी इसलिए है,
क्योंकि उसे कुछ हो जाना है – उसके पास कोई अर्थ है।
मैं यह नहीं कह रहा है कि अर्थहीन के पास मुश्किलें नहीं है।
पर उनके पास अर्थ वालों के जैसा हर समय चिंता नहीं है। कंपटीशन नहीं है।
राम चिंतित तब हुए थे जब लक्ष्मण मुर्छित थे या सीता का अपहरण हुआ था।
क्योंकि उनके पास उस वक्त अर्थ था। लेकिन वह उस विकट परिस्थिति में भी औरों से ज्यादा संयमी रहे,
जानते हो क्यों ? क्योंकि हुआ यह बस लक्ष्मण के कारण था।पर वो सिर्फ क्षणिक चिंता थी –
क्योंकि वो सिर्फ एक समस्या थी जो जल्द खत्म होने वाला था – पर अर्थ एक लंबी प्रक्रिया होती है –
जो कभी पूर्ण नहीं होती – जैसे अगर राम को अयोध्या कि गद्दी चाहिए होती तो –
वो लक्ष्मण के मूर्छा के बाद भी बेचैन होते।
अर्थ सिर्फ कुछ सदियों तक ही अधिक – से – अधिक जीवित रह सकता है।
या जब तक कोई अर्थहीन चीज – कोई कर्म ना करें। पर अर्थहीन चीज तब भी रहेगा जब सूर्य भी ना होगा –
पृथ्वी भी ना होगी क्योंकि संपूर्ण सृष्टि अर्थहीन है – शिवांश हैं और शिवांश में वही रह सकता है जो खुद ही शिवांश हो।
आप अगर साधारण जिंदगी में देखें आमजन के तो देखेंगे तो चिंता- तनाव-अलगाव- छोटी-मोटी खुशियां।
तो कभी मर्डर – तो कही रस्सी से लटक जाना। जानते हो क्यों? क्योंकि कोई अर्थ अधूरा रह गया होता है।
आप यकीन मानिए अर्थ भले ही आपको लगे पूरा हो गया है- पर अर्थ हमेशा अधूरा रहता है।
अंबानी-अडानी एशिया के सबसे रहीश इंसान हैं।
पर दुनिया के नहीं। इलॉन मुस्क अभी इस दुनिया के सबसे रईस इंसान है। पर ध्यान दें तो पायेंगे कि जो वह धन है ना –
तालाब से भी बहुत छोटा है। क्योंकि अर्थ की कभी – भी पूर्ति नहीं हो सकती। वह आपको संतोषजनक लग सकती है –
पर वह संतुष्ट होने नहीं देगी। क्योंकि यह पृथ्वी अर्थहीन है – और जो भी इस पृथ्वी पर है।
वह भी अर्थहीन है। तो इस प्रकार से
आप का जो अर्थ है – वह कभी-भी पूर्ण रूप से नहीं भर सकता। भरेगा भी कैसे? अर्थ – अर्थहीन से।
जितना आप उसे भरोगे उतने अधिक बेचैन – परेशान हताश – निराश-डरेक्ष- सहमे से रहोगे।
इसीलिए अर्थहीन बनो। कुछ और नहीं हो जाओ। क्योंकि अगर हो भी गए – तो भी अधूरे रह जाओगे।
बनना है तो – पानी की तरह अर्थहीन बनो ।अर्थहीन होने का मतलब – लक्ष्यहीन होना नहीं है।
इसका मतलब है आपके अर्थहीनता में लिन कर्म। यानी कि कर्म करते हुए जागरूक रहना अपनी अर्थ हीनता के बारे में
– संसार की अर्थ हीनता के बारे में।
( 🥰🙂👇)
1. भगवान मेरी इच्छा पूरी क्यों नहीं करते ?🤔😢
2. आखिर क्यों पूजे जाते हैं – ये लोग ? 🤔🤔
————–^Meri Kitabe ^—————
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !