बुरा
यह एक दफ्तर दफ्तर की कहानी है। जहां होड़ है कर्मचारियों में नंबर एक होने की,
ताकि सम्मानित -पुरस्कृत और सबसे बड़ा बन सके वो। और जैसा आपको पता है
पुरस्कृत होने के लिए आपको पार्टिसिपेट करना पड़ता है। दिखाना पड़ता है।
ठीक उसी प्रकार ये कर्मचारी अपने बॉसिस के नजरों में आने की हर बार कोशिश करते।
और जैसा कि आप पहले से ही जानते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं।
इसका भी है हेल्दी और अनहेल्दी प्रतियोगिता। हेल्थी में होड़ होती है
नंबर वन बनने की पर किसी को दबाकर नहीं। जानबूझकर नीचे गिराकर नहीं।
और सच पूछो तो यह प्रतियोगिता का विजेता ही सच में विजेता के लायक होता है ।
क्योंकि वह अपने काम को बिना किसी डिस्टरबेंस के पूरी फोकस के साथ एक –
दूसरे को आगे बढ़ाने में मदद करके जीतते हैं। जो उनको ना केवल काम के
लायक बल्कि सामाजिक भी बनाता है। जो उस काम और समाज के साथ न्याय कर सकता है।
और इसका दूसरा पहलू है अन हेल्थी यानी कि जीतना है। कैसे भी!
इसके लिए पूरी फोकस के साथ तैयारी ना करके, और कैसे तैयारी कर रहे हैं।
उनकी टांग कैसे खींचे? ताकि सब गिर जाए और हम नंबर वन बन जाए ।
ठिक यही माहौल इस कंपनी का था । हर काम की फोटो भेजना एक नहीं दो – तीन फोटो भेजना ।
बॉस को देखकर पालतू कुत्ता हो जाना। बॉस के सामने औरों की बेज्तीज करना कि
उसको यह काम दिया था – हुआ नहीं है। वो कामचोर है – कैसे होगा ? होगा कैसे?
वह तो ऐसे ही है। औल एक – दूसरे को बदनाम करना।
और सामने वालों की टीम के सामने अपनी टीम की बेज्जती करना ताकि उनकी टीम में से वो
चुने जाए और इसका बेहद कोशिश करते और एक – दूसरे के सामने ऐसे रहते जैसे जय और वीरू।
एक बार फिर सम्मानित पुरस्कृत करने का वक्त आया।
सबसे ज्यादा काम करने वाला बंदा चुना गया। और ऐसे ही यह कार्यक्रम चलता गया।
जब तक वह सारे कर्मचारी मर के प्रभु के द्वार नहीं पहुंचे।
वहान सम्मानित पर कोई नहीं हो पाया ना-कामी ना – निकम्मा।
बल्कि सबको बुरी प्रवृत्ति का कहकर नकारा गया – तेल में तले गय।
जो अवार्ड मिला था वह किसी काम नहीं आए ।
अंत में वह रोये बहुत पर वक्त बीत जाने पर कद्र करना दर्द देता है – अवार्ड नहीं। . . .
[ टीम]
आप ताकतवर हो कितने भी पर युद्ध जीतने के लिए एक सेना की आवश्यकता अवश्य पड़ती है
राम – विष्णु अवतार, रावण – महा ज्ञानी, पांडव प्रतापी , कौरव-सौ ।
पर सबको युद्ध जीतने के लिए एक सेना की जरूरत पड़ी। इससे ही टीम कहते हैं।
और वहीं सेना युद्ध जीता कर दे सकती है जो अनुशासित और प्रशिक्षित है।
और प्रति आपके समाज के प्रति उत्तरदाई हो धर्म निष्ठ हो एकत्रित हो
और सबसे जरूरी जीवित हो। और यह सेना हमारे शरीर के अंग भी है
जैसे हाथ – पैर – आंखें – नाक – मुख – त्वचा – दिमाग
आपके प्रति वफादार कम्युनिस्ट पवित्र होना अनिवार्य शर्त है युद्ध जीतने के लिए।
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !