सास-बहू
एक गांव में राम-श्याम और रीता तीनो भाई-बहन। अपनी मां पापा के साथ रहते थे। तो राम सबसे बड़ा था
और नौकरी भी करने लगा था। तो मां ने राम की शादी करवा दी।
बहू आई तो मां रीता को कहती है कि तेरी भाभी है ध्यान रखियो।
और बहू से पहले रसोई के दिन बहू के सामने,
” यह सब बनाना है तुम्हें , और मन में पता नहीं कैसे बनायेगी?
दूसरे घर की है ना!” और बहू ठिक है मां-जी ; और मन में पता नहीं कितना खाते हैं? कितना हूकूम जमाते हैं।”
ऐसे ही 6-7 महीने बाद घर का बंटवारा हो-गया। श्याम-रीता, मां-बाप एक साथ ।
और राम दूसरी तरफ।फिर कुछ दो-चार साल बाद रीता की शादी हुई।
रिता की मां रीता की सास को बोलती है कि हम अपने घर की बेटी दे रहे हैं
ध्यान रखना, अपनी बेटी की तरह।
और रीता की सास रिता के पहले रसोई के दिन वही करवाती है
जो रिता की मां ने उसके बड़े भाई की पत्नी उर्फ उसकी भाभी के साथ।
और इसमें भी वही मन में कहा जो उसकी बड़ी भाभी ने अपने रसोई के वक्त कहा था।
और 5 महीने बाद यह भी अपने सास-ससुर से अलग हो गई।👇
अब ध्यान देने वाली बात यह है कि ऐसी कौन सी चीज है जो एक बेटी को अपने बाबा के घर पर हर काम भले ही
थोड़ा रूठ के पर करने पर जिम्मेदारी के साथ करती है। भाई के दबाव,
पिता की डांट मां के काम के बाद भी सारे घर को मुस्कुराते हुए संभालने वाली।
दूसरे के घर में जा के अलग हो जाती है। और दूसरी बात ध्यान देने की यह है कि ऐसी कौन सी चीज है
जो एक मां को अपनी बेटी की साथ स्थिति कितनी भी खराब हो जोड़ें रखती है। मगर पतोह के संग नहीं।
क्यों जमती नहीं है? चलो साथ में इन रिश्तो के आगाज से देखते हैं। पहले बात बेटी की जो बाद में बहू बनती है।
एक बेटी अपने मां-बाप आके घर को संभालती है। जोड़े रखती है। चाहे दर्द कितना भी हो।
क्योंकि वह दिल से उसे अपना घर और वहां के सदस्य को अपना मानती है।
मगर शादी के बाद (उसको यह बताया गया होता है कि तुझे वहां बहुत काम करना होगा
भले ही उतना ही काम मिले जितना उसे अपने घर पर मिलता हो)। दूसरा पत्नी जो बेटी से पतोह बनती है।
तो इसे यह भी पता होता है कि वह जिनकी पत्नी है वह उनके बेटे हैं। तो वह उनके बात मानेंगे हमारे मानने से ज्यादा।
तो वह यहां से अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश करती हैं।तो वहीं दूसरी तरफ जो कहीं उसकी बेटी को ज्यादा काम ना करना पड़ जाए
इसके लिए काम पहले ही कर लेती थी। अब वह काम बढ़ाती है। इतना बदलाव जमीन आसमान का आखिर आता कहां से है।
यह इस समाज से आता है, जो यह बताता है कि एक बहू अपनी सास के लिए कितना दुखदाई होती है।
जब उनके बेटे की शादी होती है तब यह इस बात से प्रभावित हो जाती है कि उनका बेटा अब इनकी नहीं सुनता।
उनके साथ सही से बात नहीं करता। वह अब उन पर ध्यान नहीं देता। तो वह अपने बेटे को खोने का डर से अपनी बहू को दुश्मन मान बैठती है।
और अपनी बहू को महारानी की संज्ञा दे देती है। जो अपनी बेटी को कभी राजकुमारी कह कर बुलाती।
रानी यानी कि राज करने वाली और राजकुमारी यानी कि राज करने योग्य वाली।
बड़ा फर्क है दोनों में जो यहां मां-सास जितना ही है।
मगर यह बात भी सच है कि ताली एक हाथ से नहीं बजती। जिम्मेदार दोनों होते हैं।
बेटा-पति इस पर हक के लिए घर के दो टुकड़ों में बांट देते हैं।
मगर हर मां ऐसी नहीं होती और हर बहू भी ऐसी नहीं होती। क्योंकि सास भी मां होती है
और बहू भी बेटी होती है ।बस जरूरत होती है तो एक-दूसरे का हाथ थामने की नाकि उठाने की।
वर्ना हर सास भी बुढ़ी होती है और हर बहू भी मां बनती है।
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !