राधा-कृष्ण संवाद
एक बार काई सालो बाद कृष्णा राधा से मिलते हैं। कृष्ण राधा को देख के मस्कुराते🤗 हैं ।
और राधा थोड़ा क्रोधित😡,क्योकि वो उन्हे प्रेम करके ना निभाने वाला समझती थी।
मगर फिर भी प्रेम पूरा हो-या-ना-हो प्रेम तो प्रेम होता है ।जैसे जय श्री कृष्ण से पहले राधे-राधे होता है।
राधा बोलाती है की तुम एक बार फिर मिल गए, एक बार जो मिले थे वह कफी नहीं था क्या?
दिल दुखने के लिए मेरा ! मैं तुम्हें सच्चा इश्क समझा, और तुम तुम यूं ही वदा करके छोड़ कर चले गए।
मैः विरहा की अग्नि में जलती रही !और तुम आज भी मुस्कुरा रहे हो।
मेरे लिए जन्म लेने वाले मुझे तो छोड दिया मगर, उस अर्जुन का पूरा साथ दिया।
बंसी के धुन पर नचाने वाले हाथो से, महाभारत का शंखनाद किया, फिर भी मुस्कुरा रहे हो।
यह तुम कैसे कर लेते हो कृष्ण।आखिर कैसे!
जब रिश्ता निभाना ही नहीं था तो रिश्ता बनाया ही क्यों?
कहते हैं कृष्णा की मुस्कान आंखों से झलका पड़ी और लोगो उसे रोना कहते हैं।
कृष्ण ने कहा ” जन्मा तो तुम्हारे लिए ही था; मगर नियत कुछ और चाहती थी।
तिस पर राधे और क्रोधित हो गई, और बोली नियति, किस नियती की बात कर रहे हो तुम!
तुम सारी सारी सृष्टि के पालन हर और तुम खुद को नियति वश-विवश बता रहे हो। कोई झूठ बोलना तो तुमसे सिखे कृष्णा।
कृष्णा कुछ और अश्रु बहाते हैं। और बोलते हैं मैं तो तुम्हारा ही हूँ राधे। चाहे वो फिर मिले हो या ना मिले हो।
और रही बात अर्जुन की तो मैंने अर्जुन का साथ नहीं दिया। मैने न्याय का साथ दिया जो; तुम्हारे-हमारे और
इस संसार के सभी रिश्ते और स्वयं महादेव से भी ज्यादा जरुरी है। मगर तुम्हें समझ में नहीं आएगा राधे!
चूकी तू मुझे अपने प्रेम का दोषी मनाती हो । मगर मैं अपना दर्द का दोष किस पर डालू।
तुम्ही बताओ न राधे !महाभारत मैने नहीं करवाया।महाभारत कौरव और पांडवों के कर्मों ने करवाया।
मै तो बस एक पात्र मात्र था। उस युद्ध का ।मै युद्ध नहीं था। न मेरी जमीन थी।
नाम मेरा इज्जत दाव पर लगी थी। मेरा! मेरा तो कुछ भी नहीं था मगर फिर भी लोग मुझे ही दोषी समझते हैं।
और तुम भी राधे! हाँ! हाँ! तुम।कृष्ण। तुम ही हो इस विनाशकारी युद्ध का कारण।मै! मै! राधे! वो कैसे?
तुम चाहते तो रोक सकते थे उस युध्द को, मगर नही तुम्हे तो विनाश करवाना था इस सृष्टि का।
तुम्हे उस अर्जुन से जो ज्यादा मोह था।
मै इस युद्ध का कारण नहीं था। युद्ध के करण तो और पांडव का आज्ञाकारिता और कौरवो कि दुराचार था।
करण तो धृतराष्ट्र का अपने बेटो को ना रोक पाना था।किरण तो भीष्म पितामह का ना बोले पाना था।
मगर वह भी मुझे ही दोषी मानता है। और यहां जिससे उम्मिद थी वह भी दोषी मानता है।
इस युद्ध मे मेरा दाव पर कुछ नही था।ना मेरी गांव दाव पर थी, ना मेरी ईज्जत।मेरा तो कुछ भी नहीं था।
मगर फिर भी दर्द मुझे ही सबसे ज्यादा हुआ। मेरा भाई मुझसे अलग हो गया। मेरी नारायणी सेना को मरना पड़ा।
और फिर भी मुझे ही अपनों के खून से होली खेलने वाला कहा गया। नहीं उस दुर्योधन को किसी ने कुछ कहा,
ना उस धृतराष्ट्र को और ना ही उस भीष्म को जो शायद मुझसे भी ज्यादा दोषी थे।
चलो मैं मनाती हुं तुमने महाभारत नहीं करवाया। मगर मेरे दर्द का कारण कौन है?
श्रीकृष्ण सिर्फ राधा को देखते है!अपने अश्रु पोछते है। फिर मुस्कुराते हुए यूँ ही वहाँ से दूर हो जाते है!
और आगो एक व्यक्ति से मिलके; एक हल्की सी मीठी मुस्कान के साथ राधे-राधे कहते है!
आपको भी जय श्रीकृष्ण!
राधे-राधे!🙏🙏🙏
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