सच्चा-प्यार
भाई!
वो जो लड़की दिख रही हैं ना। पहली बार देखी है। सोच रहा हूं पटा लूं। क्या पता इस बार सच्चा प्यार मिल जाए। कुछ और कहा उसने।
हम आगे बढ़े और काफी आगे बढ़ आए। यह बात हुए 1 दिन बीत चुका है। मैंने लड़की तो सही से नहीं देखा था।
मगर सुना शायद बहुत गहराई से था जो इतने गहरे उतर आई है कि अभी तक याद है।
सच्चा प्यार, खूबसूरत चेहरा, काफी उम्दा ख्याल है।
मैं प्यार को तो नहीं जानता। मगर अपने दोस्त को जानता हूं, दूसरी क्लास से और
अभी बारहवीं के फरलरी में पहुंचने वाले हैं, इतना जानता हूं।इसके बहुत सारे किस्से हैं।
गैर से खैर और फिर बगैर होने की। इसी सच्चे प्यार की तलाश में।
इसने पहली गर्लफ्रेंड तब बनाई थी। जब मेरे को यह भी मालूम नहीं था, कि मैं क्या पसंद करता हूं? क्या नहीं?
जब चाहे लड़की हो या लड़के। सारे सिर्फ एक ही कैटेगरी में आते थे, कानी उंगली से दोस्ती और कट्टा कह के दुश्मनी।
यह बातें चौथी और पांचवी कक्षा की है, जब हमारे नाक बहते रहते थे, कपड़े मैले होते थे और लंच में भागने के सिवाय –
डंडा ही है जो सही से पता था। तब से सच्चे प्यार की तलाश में हैं। सच्चा प्यार यह शब्द उसने उसे उम्र में तो नहीं कहा था।
बस बताया था कि मुझे उससे प्यार है।
खैर!हमें क्या था। हम तो उस उम्र में सिर्फ लड़का हो या लड़की उनके संबंध को, दोस्ती ही समझ पाते थे।
इसका यह किस्सा जो उसके साथ शुरू हुआ, समय के साथ, कक्षाओं के संग बदलता गया।
मैंने देखा है इसका वो छठी कक्षा से पायल- तो कभी कान का (बाप के पाॅक्ट से चुराय पैसों से) फेरीवाले से खरीदकर,
जून की छुट्टियों में चुपके-चुपके रोते हुए।
कक्षा में बोर्ड से ज्यादा और पढ़ाई से बड़ा अपने प्यार को देखते और पढ़ते हुए।
इन कहानियों में मैं जमीं था, वह और उसकी मोहब्बत आसमां।
मैं दूर से ही उससे जुड़ा था। पर फिर भी काफी दूर था।
इसकी मोहब्बत आसमां में सूरज-चांद- मौसम जो भी कहो के साथ बदलते रहे हैं।
कई किस्से हैं सच्चे प्यार की तलाश कि। वह गेट के पीछे अपने कमरे के,
उसका नाम लिखना-ब्लेड से हाथ पर उसके अक्षर का शुभ शुरुआत लिखना
या लड़की का नंबर पा , जब खुद का मोबाइल नहीं होता था,
तो उसका नाम पापा के फोन पर दिल लगा के अनाॅन लिखना।
मगर वह अनाॅन इतना नाॅन था; कि पूरे स्कूल को इनकी कहानी पता थी।
खैर इतना तो हम भी जानते हैं प्यार छूपता नहीं है, चाहे हम इस क्षेत्र के नौसिखिया हो या बच्चे ।
क्योंकि हमने ये खेल जो भी समझो खेला नहीं।बस देखा है।
इसके हर सच्चे प्यार का वह रंगीन और खुशहाल शुरुआत और अंत हर रचनाकार की मोहब्बत की तरह।
मगर प्यार में सब जायज है ना। इसलिए यह सब करता है।
घर पर एक, गली में 3, स्कूल से घर तक के साथ के लिए किसी लड़की का साथ, ऑनलाइन में 10-15 मगर हर काम होने के बाद भी काम पूरा ना होना।
मुझे समझ में नहीं आया उसके प्यार का चक्कर। बड़ी खूबसूरत है।
यार!
इसे पटा लेता हूं।
क्या पता इसमें ही सच्चा प्यार मिल जाए।
इसकी यह तलाश ना जाने कब तक जारी रहेगी!
मगर मुझे इसे और भी कइयों को देख के यह पता चला कि:-👇
सच्चा प्यार रेगिस्तान की मृगतृष्णा है या राधा-कृष्णा!
खोजना नहीं पड़ता। मिल जाते हैं। मगर बहुत ज्यादा करीब जाने पर निर-रहित तलाब हो जाते हैं।
सच्चा प्यार वह मृगतृष्णा है जो आपको अपने पास बुलाता है। हर बार बुलाता है। आपको भगाता है।
और जब आप थक के, हार जाते हैं। और जब आप थक के हार जाते हो ।टूट चुके होते हो।
सबको मृगतृष्णा समझते हो। तब वह सच्चा नदी दिखती है। जो आपका हाथ पकड़ती है।
पर आपको उन मृगतृष्णाओ के कारण इसे भी मृगतृष्णा नहीं समझना होता है।
बल्कि उनको भूल के इस में डूब जाना होता है। सच्चा प्यार खोजना नहीं पड़ता,
सच्चा प्यार आपको मुसीबत में नहीं देख सकता।
उस वक्त जो आपका हाथ पकड़े। उन मृगतृष्णाओ से अच्छा है। अगर रेगिस्तान में ठहरा गंदा पानी ही मिल जाए तो।👇
मगर उसको अपनाना भी होगा फिर उसको छानना होगा। फिर ग्रहण करना भी आपको ही पड़ेगा।
सच्चा प्यार वक्त के फल जैसा है-
जब-तक खुद पक्का के गिर नहीं जाता-
तब-तक मिठास नहीं दे सकता !….
*********( Meri Kitabe )*********
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(सच्चा-प्यार)
(सच्चा-प्यार)
(सच्चा-प्यार)
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !