अपनाएंगे नहीं – तो बदलेंगे कैसे ?
जय श्री कृष्णा दोस्तों !
आज इस ब्लॉग में कुछ गलती हो सकती है। तो आशा करता हूं कि आप लोग मुझे माफ़ कर –
मेरे शब्दों पर ना-जाकर, अर्थ पर जाने की कोशिश करेंगे।
तो चलिए सफर की शुरुआत करते हैं. . .
श्री राम कोई प्रमाणित करने वाली – प्राण नहीं है। वह प्रतीक है पूर्ण इंसान का।
इन्हें जानने की – नहीं अपनाने की जरूरत है। क्योंकि कि गंगा के अवलोकन मात्र से शरीर गंगा के पानी से स्वच्छ नहीं होता है।
उस में डुबकी लगानी पड़ती है – तभी पाप छूटते हैं। ठीक इसी प्रकार श्रीराम है।
उन्हें हमारे पूर्वजों ने अभी तक इसलिए नहीं सुनाया या बताया है, कि हम प्रमाण मांगे !
बल्कि इसलिए सुनाया कि हम उनके जैसा बन सके।
क्योंकि समाज में आप झाकेंगे तो – पाएंगे कि मां-बाप बच्चों को जब बताते हैं कि,
शर्मा जी के बेटे को देख या वर्मा जी की बेटी को देख। तो उनकी मंशा अपने बच्चों को नीचा दिखाने की नहीं होती है।
बल्कि उनको समाज में प्रतिष्ठित पद दिलवा सके – मान दिलवा सके की होती है – और ऐसा तभी होता है –
जब बच्चों में वो काबिलियत आए। ठीक इसीलिए हमारे पूर्वजों ने इन्हें हमें बताया था कि हम ना केवल समाज में खड़े हो
पाए बल्कि समाज को हमेशा हमेशा के लिए बदल सके। क्योंकि राम – कृष्ण सबसे बड़े प्रतीक है।
इस संसार में अर्जुन, कर्ण, परशुराम और ना जाने कितने महा ज्ञानी महाबली हुए पर राम और कृष्ण इन सबके आधार है।
वह सबसे बड़े हैं। इसलिए हमें उनकी कहानी बताई जाती है। क्योंकि जो अंदर जाएगा वही तो – बाहर आएगा ना ।
इसलिए राम -कृष्ण प्रमाण के नहीं, सम्मान और समर्पण के लिए है। क्योंकि जो देश के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित है।
वह आतंकवादी हो – ही नहीं सकता। ठीक इसी प्रकार जो श्रीराम – श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित है।वो चरित्रहीन हो-ही नहीं सकता।
अब कुछ लोग राम – रहीम और उनके जैसे कई बाबाओं का नाम लेंगे।
तो याद रखें कि वह कामना के प्रति समर्पित थे । राम के प्रति नहीं। वह तो बस उनका दिखावा होता है ।
और आप लोगों को तो पता ही होगा दिखावा आदमी की हालत और खराब कर देती है।
जानते हो आज हमारे समाज में असामाजिकता –
असमानता – मोह माया-लालच-वंशवाद, स्त्री के प्रति गलत विचार क्यों है ? क्योंकि हमारे समाज ने राम -कृष्ण को सम्मान देने की जगह,
सर्वाधिक तराजू पर चढ़ाया है।
भाई-भाई इसलिए लड़ते हैं । परिवार इसलिए टूटते हैं-क्योंकि हम राम – भरत – लक्ष्मण –
शत्रुघ्न जैसे भाई थे या नहीं को लेकर संकोच में रहते हैं। शंका करते हैं। प्रमाण मांगते हैं। जबकि हमारे पास एक प्रमाण है ना – औरंगजेब का ।
खैर इस पर कभी और चर्चा करेंगे। क्योंकि मैं यह लेख किसी संप्रदाय विशेष के लिए नहीं – समाज के लिए लिख रहा हूं।
क्योंकि राम और कृष्ण सबसे बड़े सामाजिकता के उदाहरण है।
हमने उल्टा काम किया है। सूर्य हमारे सामने था – पर हमने दिए की पूजा की है।
सूर्य की तरफ हम सीधा – सीधा नहीं देख सकते, इसलिए कह देते हैं कि वह देखने योग्य नहीं है।
जबकि देखने लायक हमारी खुद की आंख नहीं है। उसके अंदर इतनी क्षमता ही नहीं है। इसलिए कह देते कि अंगूर खट्टे हैं।
इसलिए राम -कृष्ण और संपूर्ण देवता तराजू के लिए नहीं सम्मान के लिए है। क्योंकि जिसकी समाज में इज्जत होगी,
बच्चे-जवान-बूढ़े सब वही बनना चाहेंगे। पर हमें अंधभक्त भी नहीं बनना है। हमें सही अर्थों में भक्त बनना है।
क्योंकि राम के बारे में कृष्ण के बारे में उन्होंने भी लिखा है जिन्होंने कभी राम को समझा ही नहीं स्वीकारा ही नहीं।
और जैसा कि आप जानते हैं जिसने समझा ही नहीं वह उस प्रतिक के बारे में समझा ही क्या सकता है ?
बस यही कि उसकी बुद्धि कैसी सोच रखती है। बस इतना ही ना।
क्योंकि जिसने पत्थर देखे हैं – वह पत्थर ही उठायेगा ना और उठाएगा भी क्या ?
पर जिसने पत्थर में मूर्ति देखी है। वह पत्थर उठाएगा क्या ?
सोचो!
सोचने वाली बात है। पर हम सोचेंगे कैसे ? क्योंकि हमारी आधी से ज्यादा शक्ति तो तराजू पर व्यर्थ करवा दी गई है।
यह ठीक वैसा ही है जैसे खेती के बारे में उसने लिखा जिसने कभी खुद हल छुआ नहीं – बस फसल देखा था।
बोए हुए और सोचा चलो थोड़ा कमाते हैं। और उसने लिखा दी और हमने उसकी लेखनी भी पढ़ी।
इसलिए कहा अंधभक्त नहीं – भक्त बनना। क्यों हम उनकी किताबों को भी पढ़ेगे जिन्होंने कभी उनको समझा ही नहीं –
स्वीकारा ही नहीं। अपनी चेतना से निर्णय लेना। क्यों चेतना सबसे महत्वपूर्ण चीज है।
क्योंकि राम और श्रीकृष्ण कहते थे कि मैंने तो सब कुछ बता दिया है। अब अपनी चेतना से सोचो और कर्म करो।
चेतना सबसे बड़ी होती है। और चेतना का विकास हमारे समाज से ही होती है। हम जिसे अनुग्रहित करते हैं – उससे ही होती है।
इसलिए बोलिए राधे-राधे !
जय श्री कृष्णा !
जय श्री राम !
मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जय !
रूकिए – रूकिए!
जब-आपने।
मर्यादा पुरुषोत्तम सुना तो क्या आपके मन में स्त्री के प्रति कोई बुरा विचार आया –
किसी अन्य घृणा से ग्रसित हुए।
इसलिए मर्यादा पुरुषोत्तम को परखों – नहीं अपनाओ !
तो बोलो।
हरे राम – हरे राम।
राम – राम, हरे – हरे ।
हरे कृष्णा – हरे कृष्णा ।
कृष्णा – कृष्णा, हरे – हरे!
3= > कामवासना:- से छूटकारा पाने का मार्ग?
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !