वो पुराने दिन
यार वह पल कितने अच्छे थे ना। जब हम बच्चे थे। वो स्कूल के दिन कितने अच्छे थे-ना। वह कॉलेज कितना रंगीला था ना ।
अब तो जिंदगी जैसे कैद हो गई है। पहले हर कोई समझाता था- गलती हो जाए तो नादान समझ-पिठ थप-थपा
हमें शर्मिंदा कर और फिर प्रोत्साहित कर कहते थे-“तुम बच्चे अच्छे हो। फिर-भी ऐसा क्यों किया?
अब-अब तो पापा भी चिल्लाते हैं और दुनिया भी । अब रहा ही क्या ? अब सब कुछ मुश्किल है!
काश वो पुराने दिन वापस मिल जाते हमें। हम बड़े ही नहीं हुए होते। यह जिम्मेदारीया नहीं होती।
वह दिन फिर लौट के आ-जाए तो कितना अच्छा होगा ना। अब तो सब बुरा है, यह बातें रमेश-सुरेश अपने से किए जा रहे हैं।
और उन दिनों को याद कर आंसू ना दिखने वाली जो मुस्कुराहट होठों से छलक जाते हैं ना वह वाली रोये जा रहे हैं।
और ऐसे ही यह खाली इन्हें जब भी मिलते खो जाते पुराने -सुरमय दिनों में। वो दिन कितने अच्छे थे ना।
और जब अच्छी फिल्म चलती है- समय का पता नहीं चलता ना इनको भी नहीं चलता था।
खाली समय बैठे-बैठे कब सुबह से शाम शाम से रात हो जाता है। पता ही नहीं चलता।
बस चलती है तो पुरानी एल्बम की खुली यादें, और कोई पूछता है कि “कैसे हो?”
तो ठीक ही है! पर क्या यह सच में ठीक हैं? क्या आज सच में बुरा है? जब रोहन ने पूछा इन दोनों से- “भाई इन्वेस्टिंग सीखोगे?” बोले
सीखना तो चाहते हैं पर समय नहीं है। और क्या पता पैसे आए या ना आए।
इससे अच्छा है कि ना-ही करें। और बातों ही बातों में यार वो दिन भी क्या दिन थे ना। क्या सच में इनके पास समय नहीं है ?
क्या सच में आज खराब है? या कुछ और ही खराब है? क्या आप भी अपने आज को कल की तरह चाहते हैं।
अगर नही; तो
अपने आज को आज की तरह खर्च करें।क्योंकि जो आप आज है वह आपके कल की देन है।
और अगर आप भी अधिकांश उन्हीं पलों में जाना चाहते हैं- तो याद रहे वह पल जो अभी का पल है
जो आप जी रहे हो। वही पल वापस लाएंगे। क्योंकि उन्हीं पलों की वजह से आप यहां पर हो। जीयो पर कैसे-यह आप पर है।
एल्बम खोले पर- एल्बम को बंद करने का समय आप पर है। वर्ना तो हर कोई बच्चा बनना चाहता है।
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !
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