भगवान को दान
एक ब्राह्मण था। जो कि बहुत विद्वान और धनी था।
उस राज्य के राजा से भी बड़ा धनवान माना जाता था।
यह ब्राह्मण और ओहदे से यह राज पंडित भी था।
और राज्य के सबसे बड़े मंदिर भगवान विष्णु के मंदिर का अधिकारी भी।
इसने अपने धन और ज्ञान की ललक के कारण विश्व की सभी साहित्यिक रचना पढ़ डाली ।
और जब उसने 16000 से भी ज्यादा किताबें पर डाली उसे लगा कि भगवान से ज्यादा शक्तिशाली खुद है ।
तो इस कारण उसे लगा कि अब उसे भगवान ने जो भी कुछ दिया है,
उसके बदले में सभी कुछ देना चाहिए जिससे वह भगवान की बराबरी कर सके।
और जनता – जनसामान्य उसको मान सके। तो संपूर्ण राज्य में घोषणा कर दी कि
वह अपनी धन-दौलत में से आधा हिस्सा भगवान की मूर्ति बनाने और
मंदिर को देगा, जो कि एक प्रकार से भगवान को दान देना ही होगा।
और वह अपने आधे धन को दे देता है पर इससे मूर्ति का पांव ही बन पाता है सिर्फ।
मूर्ति बहुत बड़ी और हीरें – ज्वहारात और बेशकीमती पत्थर की बनानी थी। जिस पर उसने अपना सारा धन दे दिया।
मूर्ति कि धर तक बन गई बाकी शिष शेष बच गया था। लेकिन अब उसके पास कुछ नहीं बचा था।
घर गिरवी रखी और बहुत बड़ा यज्ञ करवाया और लोगों ने भगवान की मूर्ति और
मंदिर के लिए धन दौलत दिए।
पर इससे भी मूर्ति पूर्ण ना हो पाया। तो इस ब्राह्मण ने अपने
विद्या के प्रयोग से हवन करके भगवान से ही पूछना चाहता था
कि मूर्ति किस कारण नहीं बन पा रहा है । ताकि वह अपना वचन पूरा कर सके। राजकीय कोष –
मंदिर पात्र से धन लेकर हवन करवाता है।
हवन कई दिन लगातार चलता है राजकोष खाली हो गया होता है।
राज ने धन देने से मनाही कर देता है।
जनता के पास जो भी था मंदिर को दान कर दिया था।
तो हवन की पूजा सामग्री के लिए धन कहां से आए तो।
अपने वादा की पूर्ति के लिए ब्राह्मण ने मूर्ति के पांव-हाथ-धड़
सब बेच डालें और 10 साल से भी ज्यादा के हवन की सामग्री इकट्ठा कर लिया।
और हवन 10 साल तक यूं ही चलता रहा जब तक लोग निराश हो चुके थे।
तथा उसके उस पूजा को देखकर भी भगवान प्रकट नहीं होते थे जिस पर लोगों ने अब धन देना
और ब्राह्मण का मान-सम्मान छोड़ दिया था।
तो भगवान की प्राप्ति के लालसा में वह वहीं पर प्रभु का नाम पुकारते – पुकारते भगवान के द्वार पहुंचता है।
पर वहां पर भी उसे भगवान के दर्शन नहीं होते।
तो यह दरबारियों से पूछता है, मैंने अपना संपूर्ण जीवन दे डाली, फिर भी भगवान के दर्शन नहीं हुए –
तो दान कैसे दूंगा।
तो दरबारी बोले- तु भगवान को दान देगा, अरे तुम भी उनके दान का ही अंश है।
वैसे भी प्रभु यहां पर नहीं है। वह तो तु जिस राज्य में रहता था।
उसके एक मंदिर के पंडित के घर गए हैं।
जो कई सालों से भगवान की सेवा कर रहा है।
आज उसे तेरे मंदिर का पंडित घोषित किया गया है ।
ब्राह्मण का अहंकार और भभक उठा। उसने कहा, ” मैंने अपने संपूर्ण धन –
वैभव खर्चा कर दिया – मिट गया, भगवान को दान के लिए।
और वह सिर्फ उनको जल चढ़ाकर राज पंडित बन गया । यह बिल्कुल न्योचित है- बिल्कुल पाप कर्म है।
भगवान को ऐसा नहीं करना चाहिए।” उसके इस व्यवहार से कुपित होकर दरबारी उसे नर्क लोग में भेज देते हैं।
और उसको फिर कभी – भी भगवान के दर्शन नहीं हो पाते।
क्योंकि भगवान तो सेवा में व्यस्त थे – तो दान कैसे लेने जाते।
2. अर्थहीन 👀 सबसे बड़ा उत्तर? 🤔
————( Meri Books )————
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !