स्ट्रेस
दसवी का वो दौड़ था। जब मैं परेशान था।टीचर्स-घरवाले-बहार-वाले सारे एक ही रट लगाय हुए थे। पढ़ ले! पढ़ ले! तेरी लाइफ बन जाएगी मैं पढ़ने लगा। मैंने देखा जो मेरी चारो-तरफ के नटखट बालक थे ।वो सारे किताबें चाटने लगो। 8 बजे का स्कूल था ,मगर 7:30 बजे पहुंचना पडता था। और छुट्टी होने का समय साडे दो का था।मगर छुट्टी तीन या साडे तीन बजे होती थी। चलो मान लिया फ्यूचर बना रहे थे; मगर उससे ज्यादा तो वो डरा रहे थे।डर मे फ्यूचर नही बनता और हर खिलाड़ी नही चमकता , कुछ टूट भी जाते है!
कुछ नहीं बहुत कुछ कुछ टूट जाते हैं। सिर्फ एक-या-दो ही चमकते हैं । मगर हम पढ़ रहे थे। मगर पहले भी तो पढ़ते थे।तब ऐसा क्यो नही!फ्यूचर खौफ से नही बनती, अंधविश्वास बनता है। क्योकि जो सत्य है, उसे प्रूफ करने की भले ही जरूरत पड़े, मगर जो वो है, वो तो है-ना। उसके लिए डराना!
- मानता हूँ, पढना जरूरी है!
- और हर किसी को पढना चाहिए!
“हम रेत थे, तो जिस तरफ हवा बहे बह जाते थे!
मगर जब से गिले हुए है, दबे पड़े है!”
इससे अच्छा था कि समझ ही नही आती!
हमे!
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !