दोष किसको लगता है ? 👀🤔
एक बैंक था। उसके ‘ मे आई हेल्प यू ? ‘ काउंटर पर एक पेन लगा रहता था।
पर हर दूसरे दिन कलम दूसरी होती थी और गांठ और गहरी होती जाती थी।
रौनक जो हर दूसरे दिन किसी – न – किसी काम से बैंक जाता।
वह कलम के रोज-रोज बदल जाने को नहीं समझ पाता ।
तो एक दिन उसने पूछ ही लिया, क्या चाचा यह रोज – रोज कलम बदल कैसे जाती है?
तो चाचा का जवाब था, यह कलयुग है ना – यह उसी का वरदान है।
जो रोज बदलती जाती है। “यानी कि आप कहना चाहते हो –
यह चोरी हो जाती है। पर कलम जैसी चीज को कौन ले जाता है ?
भला ” ! , ” भला क्या ?” जिसका जैसा मन – हर दूसरे दिन यह काम कर जाता है।
वैसे भी कलयुग है यहां हर दूसरे का मन दूषित है ।
“आप कलम क्यों लगाते हो ? मत लगाया करो। जिनको जरूरत होगी लेकर
आएंगे वैसे भी प्यासा खुद जाता है कुंआ के पास या खोदता है। कुंआ थोड़ी।
आप तो कुंवा हो। तो आपको क्या जरूरत ? ” तो चाचा बोले, ” कुंआ हूं,
इसीलिए तो ऐसा करता हूं, हमेशा भरा रहता हूं – वर्ना सूखे कुए को देखता
भी कौन है ? कुंए का कर्म है – पानी भरे रखें। यह तो पीने वालों पर आश्रित है।
उनका व्यवहार कैसा है । अगर उनके पास छेद वाली बाल्टी हैं –
उन्हें पानी उतना ही नसीब होगा जिससे गला सूख सके।
जिनका बाल्टी मेला होगा उन्हें मेला पानी मिलेगा। कुंए को कुछ नहीं होगा और ना दोष लगेगा।
अगर पानी गंदा भी होगा तो भी। दोष पानी का नहीं होगा। दोष पीने वाले पर जाएगा।
जो जैसा होगा जो जैसा डालेगा – वैसा पिएगा। इसलिए मैं तो भरा रहता हूं – अपना कर्म पूरे करता हूं। बाकी प्यासों का फेर है।, “तो आप इसे और गांठ क्यों लगा देते हो।” तो चाचा बोले, ” एक बार बाल्टी टूट जाए तो रस्सी और बाल्टी दोनों मजबूत कर देते हैं। ताकि अगली बार ना टूटे।” “आपका तो टूटता रहता है, कब – तक करेगें ऐसा ?” “जब तक यह छोटी नहीं हो जाती तब – तक।
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