⏱️ घड़ी टूटा है – समय नही
पुरस्कार के रूप में सौ ₹ मिले थे। जिस पर अध्यापक ने कहा था,
” जिन-जिन बच्चों को पुरस्कार के रुप में रुपए मिला है। वह उसका कल कुछ ऐसा खरीद कर लाएंगे जो लंबा चले और काम की हो।”
यह ईनाम मुझे कक्षा के तीसरे नंबर पर आने के लिए मिला था
बाकी जो सेकंड आई थी उसके ₹200 और फर्स्ट को ₹500 मिला था।
यह मेरी पांचवी कक्षा की वह कहानी है – जो मुझे इतने सालों बाद जब स्कूल से नाता टूट चुका है –
तब कुछ सिखाना चाहती है:-
तो हुआ यह कि मैं रूपय लेकर घर आया मां- पिता-जी को बताया,
तो शाबाशी मिली और मां के सुझाव से पिता-जी बाजार से एक सुंदर घड़ी ले आय सौ ₹ की।
घड़ी सुंदर थी। उसमें फूल के चित्र बने हुए थे। लाल लाल और सफेद का सम्मिश्रण।
मेरे कमाई की वह पहली चीज थी। जिसे देख ना सिर्फ मैं बल्कि मेरे मां-बाबा भी काफी प्रसन्नचित दिखे।
और मन किया कि ऐसे ही आगे बढूंगा और इस घड़ी की टिक-टिक की तरह ही सदैव बिना
रुके-डरे हर घड़ी चलता रहूंगा।
सुबह हुई स्कूल खत्म होने के बाद जहां मुझे पुरस्कार मिला था
उस ट्यूशन को अपने सहपाठियों के साथ उमंग में हर्षोल्लित अपने दीवार घड़ी को
अध्यापक के पूछने पर दिखाने को गाया।
वहु जल्दी पहुंच गए थे। अमूमन जैसे हर रोज पहुंचते थे। और लंच करके अध्यापक का इंतजार करने लगे ।
कि तभी मेरे सहपाठी मेरा और बाकी जिन्हें पुरस्कार मिला था, उनके पुरस्कार देखने लगो।
बाकियों ने क्या पुरस्कार राय थे । यह मेरी स्मृति में नहीं है क्योंकि मेरी
दीवार घड़ी की खूबसूरती में भंग पड़ गया था।
हुआ यह था कि सब एक – दूसरे का गिफ्ट देखने में को बेचैन थे –
मैं अभी खाना ही खा रहा था शायद, कि जब अंदर आता हूं।
भोजन करके तो पाता हूं मेरे एक सहपाठी से गलती से मेरी घड़ी टूट गई है।
यह देख मैं काफी भावुक हो गया – पांचवी कक्षा में था – ज्यादा समझ नहीं थी।
शायद रोने लगा था या नहीं पता नहीं पर नाराज काफी हो गया था।
मेरा मन नहीं कर रहा था किसी से बात करने का।
इस घटना के थोड़ी देर बाद मास्टर साहब आए फर्स्ट –
सेकंड का गिफ्ट देखने के बाद जब मेरे से दिखाने को बोला तो मैं
नाराज होकर अध्यापक को टूटी हुई घड़ी कैसे भी दिखाता देता हूं
और उनके पूछने पर सारी राम कहानी नाराजगी में बता देता हूं।
तो अध्यापक बोलते हैं
” कोई बात नहीं – नई खरीद लेना – नहीं तो इस पर नया शीशा लगवा लेना।”
मेरी घड़ी टूट चुकी थी। मेरा पढ़ने का मन बिल्कुल भी नहीं कर रहा था।
अध्यापक पढ़ा रहे थे – समय बीत रहा था।
उन्होंने जब मुझे देखा कि मेरा पढ़ने में मन नहीं लग रहा है तो बोले, ” क्या हुआ ?
घड़ी ही तो है – नई आ जाएगी। अभी पढ़ लो क्योंकि यह पाठ मैं दोबारा इतनी सावधानी से नहीं पढ़ाऊंगा
और फिर अगले टेस्ट में अगली बार थर्ड की जगह फर्स्ट आना और
इससे अच्छी ईनाम घड़ी खरीद के ले आना।”
मैं अध्यापक के बात उस उम्र में कितना समझ पाया था। यह मुझे पता नहीं।
बस इतना पता है कि शाम को घर लौटकर – मां-बाबा के पूछने पर घड़ी
दिखाई तो मेरे साथ-साथ वो भी नाराज हो गया थे।
पर कुछ ही दिन में पिता-जी फिर से नई शीशा उस घड़ी में लगवा दिए थे।
जिससे वो घड़ी फिर काफी प्यारी और आकर्षक लगने लगी।
घड़ी टूट सकती है – पर वक्त नहीं, जीना इसी पल को कहते हैं। जो कल जिएंगे – उसे उम्मीद कहते हैं। और उम्मीद आज के कार्यों से बनती है।
*********Meri Kitabein***********
*********Meri Kitabein***********
⏱️ घड़ी टूटा है – समय नही
*********kaise lagi ye kahani aur kya seekha apne ? ***********
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !