तुम्हारा वो आखिरी खत
न जाने कौन सा दिन था – वो। ना – जाने कौन सी आंधी चली थी उस दिन।
ना – जाने क्या हुआ था ? पर जो भी हुआ था । सब कुछ ले गया था मेरा। जब वह आखरी खत तुम्हारा मिला था –
मुझे। खत फाड़ दिया था मैंने – कितने टुकड़े हुए थे। यह पता नहीं पर , उससे ज्यादा टुकड़ों में-मैं बंटा पड़ा था।
तुम्हारा वह आखरी खत मेरा सब कुछ ले गया था। क्या – क्या ले गया था –
यह पता नहीं। क्योंकि मैं लापता था। तुमसे और तुम्हारी पहली लिखी खत से –
तुम्हारी पहली अर्थ से – मेरी मुलाकात 6 महीने पहले ही तो हुए थे।
कितना कुछ अच्छा था ना – उदासी, गम, परेशानी पता ही नहीं चलता था हमारी दुनिया ही अलग थी ना – दुनिया से।
मैं बंजर जमीन था – मैं सुख के खंडहर होने ही वाला था कि
तुम्हारा वो स्याही की पहली पहली लिखावट ने मेरे बंजर जमी में पहली बार नमीं पनपाया था।
तुम, मुझे याद है – मेरे मम्मी-पापा और बहनों की लंबी उम्र और अच्छी ‘लाईफ की मेरी
कामना के बाद मेरी पहली और शायद भगवान से मुझ जैसे कठोर से कि गई आखिरी मन्त थी ।
पर कृष्ण-राधा के नहीं हुए तो- वो तुम्हें-मुझसे क्या मिलवाते।
पर तुम्हारी पायल कि खनक – बिंदिया कि चमक – काजल की गहराई –
और वो तुम्हारा कंगन । मेरी दुनिया के जादू – तिलिस्म – अलर्मा – और पागलपन थी
और रहेंगी – मुझे सताने के लिए – मेरी यादों में। और ऊपर से तुम्हारा वो –
मुझे देख के मुस्कुराना – जन्नत थी । क्योंकि उसके बाद – मैं दुःख और परेशानी की दुनियां
से काफी दूर हो जाता था – चाहकर भी चिन्ता – मुझे छू नहीं पाता था।
गम में होता था – वो भी कम हो जाता था। तुम्हारी एक मुस्कान मुझ पर वो असर करती थी।
जो इंसानी बस्ती और स्वर्ग की दूरी भले ही कुछ क्षणिक पल के लिए ही – पर ओझल कर देती थी।
ठिक इसी तरह , तुम्हारी बातें – तचम्हारे संग बिताया तुम्हारी – हमारी पल।
और गिनता जाऊं तो कम पड़ जायेंगे व्याख्याएं नहीं – दिन।
तुम्हारी पहली खत से – आखरी खत तक तुमने मुझे ये बताया कि मैं बंजर नहीं नमीयुक्त हूं –
पर किसी और के सहारे नमी युक्त नहीं होना – चाहिए। क्योंकि औरों के सहारे चौबीस घंटे नहीं कटते –
तो जिंदगी की तो बात ही कुछ और है।
इसलिए शुक्रिया अपने पहले से – आखरी खत के लिए। मुझे – मुझसे मिलाने के लिए।
बेवफा नहीं कहूंगा – क्योंकि वफा तुमने ही – तो सिखाया है मुझे – खुद से ! . . .
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