काला-मूझ
नई-नई नौकरी लगी थी गार्ड की।
मैनेजर का साफ-साफ कहना था कि गार्ड को जवान और स्वस्थ लगना चाहिए। ना की बूढ़ा।
इसलिए किसी की मूंछ और बाल सफेद नहीं दिखना चाहिए।
ताकि बूढ़े ना लगे और कंपनी की प्रेस्टीज खराब ना हो।
इसलिए मैनेजर का साफ-साफ आदेश था कि मुझे एक भी बाल सफेद नहीं दिखना चाहिए।
तो सारे गार्ड बाल सफेद होते ही काले कर लेते।
हर हफ्ते अपने मूछों को काला करते ताकि वे बूढ़ा ना लगे,
और मैनेजर साहब से भी बच सके। वह जब भी मौका पाते डाई उठाते या तो खुद काला करते या करने के लिए किसी और को कहते।
जिससे मूंछ और बाल हमेशा काला लगता और इससे वह थोड़े जवान लगते। मैनेजर साहब उन्हें मानते थे
क्योंकि वह मैनेजर साहब को मानते थे। मगर जैसे-जैसे वक्त गुजरता गया बाल-मूछ तो काले लगता,
ऐसे जैसे नौजवान की पहचान। मगर वो दुखी रहते, थके-हारे हुए। उनमें जीने की ललक नहीं थी रीटायरमेंट के ख्वाब थे।
वो दिखने में नौजवान थें, मगर अंतरआत्मा से परेशान थे। ना उनसे सही से दौड़ा जाता था ना कोई काम होता।
ऐसे में क्या हुआ कि भूकंप आया और मैनेजर ने आदेश दिया नौजवानों भाग के सीढ़ियों से जाओ।
और सारे लोगों को बिल्डिंग्स से बाहर भागने को कहो।
वे नौजवान भागों। मगर थके-मांदे घोड़े की तरह दूसरे ही फ्लैट तक पहुंचते-पहुंचते फ्लैट हो गय।
और जो बचाने गय थे उनमें से अधिकतरों को बाकि बचे-खुचे गार्ड उठा रहे थे।
इस परिणाम के बाद मैनेजर ने जब उन्हें नौकरी से निकालने की पेशकश की तो उन्होंने लल्लो-चप्पो करके अपनी नौकरी बचाई।
सालों से वफादार थे, इसलिए रख लिए गए। मगर ठिक उसी तरह जैसे पुराने हो चुके टैंकों को हमारी आर्मी यानि सिर्फ सम्मान खातिर- जी-हजूरी खातिर।
यह अब भी अपने मूंछ काले रखते और मैनेजर विश्वास मगर सिर्फ दिखावे का जैसे इनकी काले बाल।
मगर उन्हीं में से कुछ गार्ड थे। जो उन्हीं के उम्र के थे। वो दस-बीस फ्लैट तक चढ़ गए ।
और आते वक्त उन बैठे हुए गार्डों को भी उठा के ले गए। आखिर कैसे। क्योंकि ये अंदर से भी नौजवान थें।
वो सिर्फ अपने बालों को या मूंछों को नहीं चमकाते। वह हर हफ्ते अपने-आप को भी बढ़ातें।
और नौकरी दिखावे के लिए नहीं करते। करने कू लिए करते थे
उसे अपना धर्म समझते थे जहां अधिकतर रिटायरमेंट के ख्वाब देखते थे।
शारीरीक सुंदरता अच्छी बात है- मगर मानसिक/ आंतरिक सुंदरता भगवान को भी प्यारा है! ❣️❣️❣️❣️❣️❣️❣️
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !