नया विचार:-
मेरे अनुसार राधा-कृष्ण
>>>मेरे अनुसार राधा-कृष्ण – एक कल्पना मात्र है मेरी यह लेखनी :- पर आप सीख ज़रूर ले ?
एक सवाल राधा का,
“लोग हम पर शक करेंगे, अगर मुस्कुराते हुए देखेंगे बिना किसी वजह के?
यह कर्म मत करो कृष्ण !”
पर कृष्ण तो है नटखट और राधा तो उनकी संगिनी- सखा या सहेली।
दोनों एक-दूजे के लिए बने। कृष्ण गर बांसुरी तो राधा उसकी धुन।
राधा को प्यार में पड़ना ही था- चाहे लाख समझाएं दिमाग, दिल को जीतना था।
राधा-कृष्ण ! प्रेम ऐसी की दुनिया देखी। बेचैनी एसी मिलन की की पार्वती भूखे-प्यासे रही वर्षों तक।
एक धुन सुनते ही ऐसे भागे आना जैसे सावन और भादो में बादलों का बरस जाना।
सबको बता के माता-पिता से, सखा से, और जमाना से; सब के समझाने के बाद भी कन्हा कि एक धुन
“पर राधा का बांसुरी का स्वर बन जाना।” ऐसा प्रेम जो दुनिया जानती है। लाखों मंदिर हैं राधा – कृष्ण के।
पत्थर के! वह जो धरातल पर लुटे-मिटे एक-दूजे के लिए। पागल इतने की शादी के बंधन में बंधने के बाद भी रोय एक-दूसरे के लिए।
पर राधा कभी जमीनी हकीकत से कृष्ण की नहीं हो पाई।
क्यों?
वह जिसे छलिया-रणछोड़ कहते हैं। वह जो छल से महाभारत जीताता है।
वह जो नरकासुर से 1600 नारियों के लिए लड़ जाता है।
वह कृष्ण जो पूर्ण पुरुष है। वह अपनी राधा को चाहते तो नहीं पा सकते थे?
वह श्राप अलग बात है। वह जिसे कोई लोक-लजा नहीं। गोपियों को तंग करने वाला।
उनके वस्त्र चुराने वाला। राधा को नहीं पना सकता था? क्या वह श्राप को नहीं बदल सकता था?
फिर उसने ऐसा क्यों किया? राधा रोती रही,
” दिल में प्रेम जगा कृष्ण तुम कैसे छोड़ गए, मुझे बीच बाजार ।”
कृष्ण भी रोम। पर क्यों? एक ना होय। इतना कुछ होने के बाद भी कृष्ण की भी शादियां हुई- राधा की भी हुई!
क्या बताना चाहते थे कृष्ण, आइए जानते हैं। वह एकमात्र यह बताने आए थे
कि एक लड़की एक लड़के के लिए पागल हो सकती है, लड़का भी।
लड़की सब के मना करने के बावजूद उस लड़के से मिलने जा सकती है।
लोक लजा की शर्म की ओट लिए मिल सकती है। एक पुकार पर बेचैन हो सकती है।
हो यह भी सकता है कि उसका एक दिन भी ना कटे उसको देखे बिना- मिले बिना।
इतना सब कुछ होने के बावजूद एक लड़की उतनी ही पवित्र हो सकती है जितना जन्म के समय।
यह बताने आए थे कृष्ण। एक नर और नारी के बंधन को बदनामी मुक्त करने आए थे-कृष्ण।
यह बताने आए थे कृष्ण। एक नर और नारी इतने पागल होने के बावजूद पवित्र हो सकते हैं
कि उनकी समाज में शादी हो सके। कृष्ण चाहते तो भाग जाते-राधा तो तैयार थी।
मगर बात नारी की इज्जत, नर-नारी के पवित्र संबंध की आ गई थी। वर्ना तो कृष्ण कहते ही थे,
” काले को काहे की लजा?”
बिना संबंध के रिश्तो को, वो रिश्ते जो शादी के बिना पाप समझे जाते थे। उन्हें शुद्ध करने आए थे कृष्ण। बोलो,” राधे राधे।”
कान्हा की बांसूरी अभी भी बजती है। राधा अभी भी नृत्य करती है। और दुनिया अभी भी सोई हुई है।
विशेषकर आजकल के बच्चे जो ईश्क को बदन मात्र समझते हैं।
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