छोटी मक्खी- बडी मक्खी
आज मैं खाना-खा रहा था और कुछ मक्खीया मेरे आस-पास आके भटकने लगी।
मैंने उन्हे भगा तो दिया ;मगर वही पर एक छोटी मक्खी-भी थी।
मैने उस पर भी दया नही किया और हाथ के झोंके से उसे भगा दिया ।फिर मै सोच में पर गया की,
अगर हम किसी को मरते हैं तो छोटे बच्चों को दया करके छोड़ देते हैं ।
क्योंकि हमे दया आ-जाती है। आगर हमारा पडोसी ने एक नंबर का झगड़ा है।
न बोलना-न सुनना कुछ भी नहीं ।तब-भी उसके बच्चे को देखकर हम मुस्कुराते है।
और कभी-कभी गोद मे लेने की भी सोचते हैं।
मगर हम वही मक्खी-मच्छर-साँप-बिच्छू के बच्चों को क्यों मार देते हैं, या भगा देते है।
क्योकि इनकी प्रकृति ही है नुक्सान पहंचने वाली !भाले ही आप अपना कितनी भी अच्छी ❤साइड दिख-दो।
वो आपके खाने पर जरूर बैठेंगो;और उसे गंदा भी करते है।
क्यो?
क्योकि उनका यह धर्म है।इसलिए हम इन्हे मार देते है या भगा देते है।
क्योकि वो कितनी भी अच्छी हो उनकी प्रकुति कभी-भी अच्छी नही हो सकती!
इसलिए कभी उन पर दया मत करना,जिन्होने तुम्हे तोडने मे कोई कमी ना छोड़ी हो। वो भले ही एक बार ही क्यो ना हो?
- दुबारा मौका देना मगर आँख👀 बंद करके नही!
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छोटी मक्खी- बडी मक्खी
छोटी मक्खी- बडी मक्खी
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !