कली और भगवान कल्कि का युद्ध
( केवल शिक्षा मात्र)
(काल्पनिक)
हमारे ग्रंथों के अनुसार जब समुद्र मंथन हुआ तो देवता और असुर दोनों मंथन में जूटे पड़े थे।
और जब अमृत निकला तो देवों ने उसे ग्रहण कर लिया। राक्षस भी उसको चाहते थे क्योंकि अमरता तो सबको चाहिए थी।
पर शायद छल से भगवानों ने वह अमृत चोरी कर लिया – ताकि धर्म ही सदैव जीत सके।
जब वह अमृत चुराया जा रहा था। तब अमृत की कुछ बूंदें एक असछर के मुंह में चली गई –
जो कि पहले आदि शंकर ने जो विष पिया था उसके अंश से प्रभाविहोकर मरने ही वाला था।
पर जैसे ही वो अमृत की कुछ बुंदे गिरी – वो राक्षस काफी शक्तिशाली हो गया।
उस राक्षस का नाम कली था। पर उसने भगवानों पर सीधा-सीधा हमला नहीं किया।
बल्कि वह ग्रंथों के अनुसार। त्रेता में रावण बनकर आया था।
और द्वापर में दुर्योधन बनकर। जिनको विष्णु के अवतारों ने मार दिया था।
पर अब ये उसका युग था। यानीकि कलयुग।
और वह दो युगों के युद्ध से सबक लेकर काफी शक्तिशाली और बुद्धिमान भी हो गया था।
उसे अमृत के कुछ बुंदों द्वारा अमरता मिली हुई थी। इसलिए उसे मारना विष्णु के लिए भी सरल नहीं था।
कली भगवान कल्कि को बराबर टक्कर दे रहा था। संपूर्ण लोक कली से भयभीत था।
सभी देव मिलकर भी कली को नहीं रोक पा रहे थे। तब विष्णु ने सृष्टि की रक्षा के लिए जो विष नीलकंठ रोक रखा था।
उसके आधे भाग को निकाल कर एक विशेष अमृत की जैसे दिखने वाले मटके में डाल दिया।
कली ताकतवर था, पर उसने अमृत की कुछ बूंदें ही पी रखीं थी।
तो जब उसे पता चला कि विष्णु ने अमृत कहीं विशेष जगह छुपा दी है।
तो वहां वह शीघ्र – अतिशीघ्र पहुंचा। और उसने वही गलती की जो दुर्योधन और रावन ने किया था।
दूसरे के अधिकारों पर कब्जा। और संयम तो उनमें था नहीं। तो जैसे ही उसने मटके को बिना देखे अपने मुंह में उड़ेल लिया।
तो वह जो शंकर पर काल बन गया था। अब इसका काल बन गया था।
इसने अमृत की कुछ बूंदें ही पाई थी पर जहर भी इसमें काफी पहले से ही था।
(और जब यह विष स्वयं शिव को कालग्रिसत कर सकती थी – तो क्या इसको छोड़ देती। )
और ऊपर से और मिल गया। पर इसमें भगवानों की तरह संयम रखना तो आता नहीं था।
और क्योंकि उसने त्रेता – द्वापर – कलयुग में सब कुछ को निगलता गया बिना सोच-विचार के।
जो इसकी आदत भी बन गया और व्यक्तित्व भी। तो जैसे शंकर ने अपने कंठ में विष को थाम लिया था –
रोक दिया था। कली नहीं रोक पाया। क्योंकि उसने कभी सीखा ही नहीं था संयम। इस प्रकार उसने अपने-आपको,
अपने ही हाथों भगवान कल्कि के आगे समर्पित कर दिया।
और फिर प्रभु मुस्कुराए और बोले :-
औरों को जलाने वालों को मिटाने की नहीं बस उकसाने की जरूरत होती है।
और वह खुद को भी भस्म कर देते हैं।
क्योंकि उनमें जलन तो पहले से ही होती है
इस प्रकार कली ने अपने आप को ही समाप्त कर । भगवान का मार्ग प्रशस्त किया।
फलश्रुति :-
भगवान स्वयं कुछ नहीं करते। वह तो इंसानों के आदत – व्यक्तित्व को नया मोड़ देते हैं।
जिस पर चलता वह स्वयं है ।
और अपनी आदत की बदौलत या तो आबाद होता है – या बर्बाद।
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