भास्कर
ये बात उस साथी की है जो इतना गहरा नही था-
मगर फिर भी कुछ तुक उसके साथ भी जुड़े है मेरे।
नाम वैसे तो दिवाकर है-मगर ऊपर भास्कर लिखा है, वो इसलिए क्योकि हमारी।
एक अध्यापक जो संस्कृत पढ़ाती थी वो अक्सर इसे भास्कर कह के बुलाती थी।
आज यह दो-सालो बाद अचानक याद कैसे आ-गया यही सोच रहा हूँ मैं भी ।
मगर जो भी कहो बंदा था सबसे अलग, स्कूल की पढाई मे अच्छा नही था।मगर अध्यापक कहते थे,
कि इसमे कुछ दाना है।दाना यानिकि ज्ञान। इसको मै दूसरी से जानता हूँ- बदमाश-शैतान-थोडा आलसी और थोड़ा फनी।
डर किसी का नही सिवाय पिता के।पिता बाकियो की तरह भी इसे पढ़ाई मे अच्छा बनते देखना चाहते थे।
चाहे कौन-ना ! वो गलत नही थे।ये अक्सर हमे बताता कि
तुम्हारे पापा तो कुछ नही मेरे जो मारते है- वो अलग लेवल पे है।
वैसे ठिक ही कहता था ; हमने भी उसे मार खाते देखा था।वो पढता नही था।
मगर यह आत्मविश्वास कह लो या अति-आत्मविश्वास; यह कहता था मैं पास हो जाऊँगा।मगर दसवी मे यह लुढ़क गया।
मगर इससे मैं किसी को नही आँकता। मैं फिर भी कहता हूँ कि वो बंदा अलग था।
स्कूल की चार-दिवारी के बाहर का ज्ञान रखता था।अक्सर स्कूल लेट पहुँचता-बिखड़े बड़े बाल।थोड़े पीले दाँत ।
और खूब सारे सवाल-जवाब के साथ एक अलग मस्ती का लेवल रखता था।
कुछ साल मेरे ही साथ पढा नौवी मे इसका और मेरा सैक्सन अलग हो गया।
मगर स्कूल एक थे और संस्कृत की कक्षा मे रोज मिलते थे।
उससे बहुत कुछ सिखने को मिलता।वो नलायक दिखता था मगर था नही।
वो सी-बैच मे शामिल हुआ एक्स्ट्रा क्लास लेने लगा।
मगर एक बात बताऊँ उसी क्लास मे हमारी साइंस की टीचर उसकी माता के नाम वाली किरण मैम का ध्यान उस पर गया।
जब वो दूसरे स्कूल को ट्रांसफर हुई तो कहा कि मै प्रिंसिपल बनने जा रही हूँ।और मै चाहती हूँ कि दिवाकर तुम मेरे स्कूल मे पढने आओ।
और बुलाती भी क्यो नही!बंदे मे दम था। मगर स्कूल पिछे छूटा तो शायद मैम भी भूल गई और यह फेल हो गया तो हम भी।
मगर जब से वो फेल हुआ है तब-से ईद का चाँद छोडो ना दिखने वाला तारा बन चुका है।यह उसकी गलती नही शर्म है।
हम सब जानते है उसके घर का पता और घर भी स्कूल के रास्ते मे ही पड़ता है। मगर वो लापता रहता है।
इसमे उसकी शर्म है जो उसे रोकती है और हम उसे कायर कहते है। मगर यह हमारे समाज की आँखे नंबर ही देखती है।
आइंस्टीन को – ऐडीसन को कहाँ स्कूल मे पूछती है।हर क्षमता को नंबर से आँकती है। इसलिए वो बाहर आने से डरता है।
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !