कामवासना :- अध्यात्म और लालसा
ब्रह्मा ने लोक बनया – परलोक बनाया और साथ ही में स्वर्ग और नर्क भी बनाया।
लोक बनाया तो उस पर रहने वाले लोग भी-
बनाया और उस लोक सहित लोग अपना भी पालन पोषण कर सके इसलिए उन्हें शक्तियां भी दी।
और साथ में लोक पर रहने वाले जीव लंबे समय तक लोक पर रह सके इसीलिए
प्रजनन शक्तियां भी प्रदान की और उस को
जागरूक करने का द्रव्य भी दिया। लेकिन जब-तक यह प्रजनन तक सीमित था और शरीर तक तो ठीक था।
पर जब से उसने समझा कि इससे आनंद की प्राप्ति होती है तो यह तो यह शक्ति निमित्त ना रहकर –
आनंद माध्यम बन गया( एक क्षणिक सुख का)।और इस कारण इसका द्रव्य (हार्मोनस) इस माध्यम के गुलाम बन गया।
दोष शक्ति का नहीं है – शक्ति के गलत प्रयोग का है। गलत प्रयोग क्या ?
शरीर जब तक निमित्त और प्रकृति के नियमों तक था तो ठीक था।
और जब से उस द्रव्य ने शरीर के कुछ अंगों को पहचान कर लिए –
जब से आनंद का कारण समझ लिया है। तब से यह शरीर दोषी हो गया है।
काम और वासना दो अलग चीज है।
लेकिन जैसे नयनों के लिए सौंदर्य उत्तेजित करता है – वैसे ही जब से शरीर – शरीर को आकर्षित करने लगे हैं।
तब से काम – वासना एक हो गए हैं।
और काम पर दोष अवश्य लगता है- पर निमित्त पर नही।
इसीलिए जब से शरीर प्रकृति का निमित्त ना रहकर – आनंद का माध्यम बन गया है।
तब से यह शरीर बुराई का घर बन गया है।
और आनंद सबको प्रिय है और जो बहुत जल्द मिल जाए वह आनंद सामान्य मनुष्यों और
असुरों का सबसे ताकतवर आमंत्रक है ।
फिर चाहे वो कैसी भी दोष उत्पन्न करें, पर हमरा ध्यान और- अधिक-और अधिक सुख की प्राप्ति पर होता है।
और जब से शरीर कामुकता का घर हुआ है।
तब से यह सिर्फ पुरुष या स्त्री तक सीमित नहीं रह गई है ।
बल्कि समाज में तक चल गई है।
इसलिए पुरुषों के लिए स्त्रियां एक विषय बन गए हैं और पुरुष स्त्रियों के लिए।
और जो विश्व के हित में नहीं है।
हम सब जानते हैं इसके बारे में और मानते भी हैं।
पर इसके बावजूद हम इसके सामने काफी कमजोर हो जाते हैं।
जानते हैं, क्यों? क्योंकि हमारे कुछ अंग – अंग ना रहकर रूचि और आनंद का पार्ट बन गई है।
और जिन विषयों में छात्र कि रूचि होती है। उसके प्रति ना चाहते हुए भी –
बाकी सभी विषयों को इग्नोर कर उसी पर ध्यान देता है।
तो क्या इस वासना से छुटकारा पाने का कोई उपाय है या हम इसमें फंस गए हैं।
सच बताऊं तो मुझे भी बहुत कामुकता से भरे विचार सदैव एकांत में पाकर घेर लेते हैं।
मैंने कई गुरू को यूट्यूब पर सुना और आध्यात्म की ओर भी मुड़ना चाहा।
पर कामुकता ने मुझे और जकड़ लिया।
(पर यह कामुकता प्रकृति का निमित्त है और यह सदैव रहेगा – पर निमित्त में रहेगा तो फ़ायदे में रहेगा।)
पर कामुकता ने मुझे और जकड़ लिया जानते हो क्यों ?
चलो विस्तार से जानते हैं!
जानते हो क्यों ? क्योंकि मैंने उन्हें बिना समझे दबगने लगा था। मैंने जबरदस्ती दबा रहा था।
पर प्रिय विषय, आनंद का विषय तब – तक नहीं खत्म होते जब तक हम किसी और
विषयों में अपनी रुचि नहीं बना लेते और आनंद नहीं प्राप्त करते।
हम इंसान डिजाइन ही कुछ बेहतर की तलाश के कारण हुए हैं।
इसमें याद रखेंगे तब-तक हम उसकी तरफ आकर्षित होते रहेंगे।
जब-तक हमें उससे बेहतर और ऊपर का आनंद प्राप्त नहीं होता। शराबी – शराब की तरफ आकर्षित होता रहेगा ।
जब तक उसे पानी और जूस में उसके ऊपर का स्वाद नहीं आता। क्योंकि क्यों एक राजा नौकर बनना चाहेगा?
पर हम कामुकता को थोड़ा रोक जरूर सकते हैं – नियंत्रण में ला जरूर सकते हैं।
उसके लिए आपको बस यह समझना होगा कि जो समाज – दोस्त यह सब आपको बताते हैं।
इन पर चर्चा करते हैं।
उनसे दूर हो जाए। हो सके तो अपने धर्म के पवित्र स्थल पर रोज जाए।
क्यों अंधेरी बस्ती से लोग तभी बाहर आते हैं
जब प्रकाश उनके द्वार पर प्रकट होता है।
लेकिन जिन्हें पता ही ना हो कि प्रकाश वाली बस्ती में अंधेरे बस्ती से ज्यादा सुविधाएं और आनंद है।
तो क्या वह आएंगे प्रकाश वाली बस्ती की तरफ – अपनी अंधेरी बस्ती को छोड़कर। आएंगे क्या ! उनकी दिमाग में यह सोच पनपेगा भी क्या ?
और एक छोटी सी बात :-
वह शरीर का भाग है – अट्रेक्शन का नहीं!
( That is part of body- not of attraction.)
जिससे बुद्धि विकसित होती है – वह बुद्धि भ्रष्ट भी कर सकती है!
———–<Meri Books >—————–
kya seekhe comment me batye !
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !