जिद्दीयाया- चांद 🌙
बात यह उस वक्त की है। जब सभी के काम विष्णु तय कर रहे थे।
चांद जिद पर अड़ गया था – कि उसको सिर्फ-और-सिर्फ सूरज ही बनना है।
वह चाहता था कि वह किसी की रोशनी ग्रहण करने वाला नहीं – रोशनी देने वाले के नाम से जाना जाए।
कि जब वह आए तो बाकी सब फीके पड़ जाए – दिखाई ही ना दे। वह सर्व शक्तिशाली बनने की जिद पर अड़ा था
और विष्णु यह बात नहीं मानते । और बिना किसी की इजाजत के वह किसी और को इसका भार भी नहीं दे सकते थे।
विश्व के कल्याण की बात थी – यह – इसलिए किसी और को दे भी नहीं सकते थे।
पर चांद वह छोटा बच्चा बना था जिसे बड़े वाला ही खिलौना चाहिए था।
चांद को इंद्र ने समझाया, पंचतत्वों ने,श्रषियों ने सब ने समझाया। पर वह मानने वाला कहां था ।
उसके नाराज हुए – जिद पर अड़े काफी दिन हो गए थे। विश्व की – ब्राह्मड की कार्यों में विघ्न उत्पन्न हो रहा था।
तो तिस पर विष्णु ने वक्त की लाज रखते हुए – चांद की जिद को मानकर। दे दिया उसे कार्यभार सूर्य का।
चांद सूर्य था तो चांद कुछ पल के लिए सूर्य को बनाया गया था। चांद खुश था क्योंकि उसे उसके जिद का फल जो मिला मिल गया था।
1.First-day 👇
ब्रह्मांड का पहला दिन। पर यह क्या, सूर्य काफी छोटा था – जो इतनी उर्जा उत्पन्न नहीं कर सकता था
कि पृथ्वी जैसे और बृहस्पति और इससे भी बड़े-बड़े ग्रह और उपग्रह चक्कर लगा सके।
जैसा होना चाहिए वैसा तो कुछ भी नहीं हुआ। कुछ हुआ पर वो कुछ ही थे- पर वैसे नही जैसे ब्रह्मांड की उपेक्षा- थी,
ब्रह्मा-विष्णु-महेश की चाहत । पर चांद को क्या था? उसे कौन समझाता। रात हुई चांद निकला चांद जो काफी बड़ा था।
सूर्य की शक्ति इतनी काफी नहीं थी कि चांद को चमका सके। चांद चमका पर काफी फीका था ।
चांद को जो करना था वह भी काम ना हो पाया। जो जीव पनपे ना सूरज को पसंद करते – ना चांद से प्यार।
2.Second-day 👇
दूसरा दिन सूरज निकला पर जब वह निकला तो – जो जीव थे- उनका हंसी निकला, “यह कैसा सूरज है – जो चांद से इतना छोटा है।
और ना-ही ज्यादा रोशनी ही दे पाता है।” और जब चांद निकला तो फिर वही,” यह कैसा चांद है जो चमकता ही नहीं है।
इसको मामा कौन कहे ? कौन ऐसी बीवी ढूंढने को कहें? इससे अच्छा तो सूरज चांद होता है –
और चांद सूरज की जगह। खैर यह तो गैरों की राय थी- तो उनके मुताबिक कौन चलता।
3.Third-day👇
तीसरा दिन, ब्रह्मांड का कोई कार्य पूर्ण नही हुआ था। उस पर काऊ दबाव पड़ा-
कि क्यों सृष्टि का ना – संसार हुआ। सूर्य जो चांद बना हुआ था – उस पर भघ दबाव पड़ा।
उस पर भी सवाल उठे – पर उस पर ज्यादा दबाव नहीं था। जितना सूरज बने चांद पर था।
4.Fourth – day👇
चौथा दिन, पर-ये, क्या बच्चा सयाना हो गया था। उसे समझ में आ गया था,
कि वह एक मात्र- बच्चों वाली जिद थी – कच्ची उम्र वाली। वह वापस चांद ही बनना चाहता था।
पर विष्णु ने कहा यह क्या चल रहा है – चंद्रदेव ? कभी सूर्य – कभी चांद।
आप समझ रहे हैं। यह खेल नहीं – ब्रह्मांड की रचना की सवाल है।
एक बार और सोच ले बार-बार आपके जिद को नहीं माना जाएगा।
तो चांद ने बोला भगवान मैं समझ गया मैं पहले नासमझ बालक था
पर जो अब समझदार बन गया है। मुझे अब समझ में आ गया है
कि बड़े खिलौने – छोटे खिलौने, आनंद-प्रतिष्ठा नहीं देते, बल्कि बचपन में गुड़िया-गुड्डो
वाला खेल और थोड़े बड़े होने पर बैट-बल्ला-फुटबॉल-कबड्डी प्रिय लगते हैं।
यहां ना गुड्डा छोटा है ना बैट-बॉल बड़ा।
बल्कि असली मर्म पद और पदवीं का है- लड़कियों के हाथ में ही गुड़िया शोभा देती है –
लड़कों के हाथ में नहीं। इसका मतलब यह नहीं कि पुरुष समर्थवान है और महिलाएं नहीं।
बल्कि सत्य यह है कि महिलाओं के बिना पुरुष कुछ नहीं – पुरुषों के बिना महिलाएं।
मोल दोनों का है। इसलिए मैं चांद बनने को तैयार हूं । विष्णु मुस्कुराए और दोनों के रोल बदल-दिय।
चांद-चांद बन गया सूर्य-सूर्य। दोनों अपने वास्तविक पद पर विराजमान।
5.Fifth-day 💐
पांचवा दिन, सूरज विशाल और भव्य। ब्रह्मांड नई ऊर्जा नए जोश में। नए -नए ग्रह-उपग्रहों का निर्माण हुआ।
रात में चांद निकला और ये चांद बड़ा नयारा था- छोटा था – पर बड़ा प्यारा था।
हजारों तारों के बीच यह इकलौता था। उन सब को अपने साथ रखें यह चमकता रहता है।
इसलिए यह सूरज से भी ज्यादा प्यार किया जाता है- लेखकों द्वार लिखा लिखा और माओ के द्वारा बच्चों का –
यह मामा बनाया जाता है – तो कभी चांद सी बीवी ढूंढ लेने का ख्वाब दिखाया जाता है।
इसके होने से आज जहां रोशन है। समुंद्र – नदिया अपनी सीमा में है।
इसलिए कहते हैं:-
कि आप-आप बनो,फिर दुखाया नहीं सजाए जाओगे, हजारों दागो के बावजूद – सबसे खूबसूरत माने जाओगे।
वरना चांद-सूरज बनकर देख लो, एक दिन खुद ही मर जाओगे!…
……✍️ वरूण
हम कभी-कभी ना औरों को देखकर औरों की तरह बनने का मन करता है।
जैसे कभी, यूट्यूब पर देख लिया किसी मिलेनियर को या किसी अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर या कहीं-भी ।
और उनकी लाइफ स्टाइल को और हमें बस कभी-कभी जिद्द चढ़ जाती हैं – उनकी तरह बनने की।
यहां तक तो सब ठीक होता है- पर गलती हम यह करते हैं -कि हम उनकी सारी चीज़ें नकल- पर-नकल करने लगते हैं।
और जब वैसे परिणाम नहीं आते – तो हम जल्दी हार जाते हैं। और हमें लगता है कि यार हमारी किस्मत ही खराब है।
या हमारी किस्मत में उनकी जैसी जिंदगी कहां लिखी है। पर यहां ना असल गलती हमारी ही होती है-
जो उनकी तरह बनना चाहते हैं। हमें ना उन-से जिसकी प्रेरणा लेना होता है- उसके बाद अपनी कमजोरियां और
अपनी ताकतों का निरीक्षण करके – उनके किए गए कार्यों का समीक्षा करके,
कि वो वहां तक कैसे पहुंचे- उन्होंने क्या-क्या किया। उसके लिए कौन-कौन से तरीके बनाए।
उनकी कमियां क्या थी- ताकतें क्या थी। और फिर सबसे जरूरी मैं उनसे किन-मामलो में अलग और
अनोखा दिख सकता हूं- कहां तक मैं अपना व्यापार बढ़ना चाहता हूं ।
आपको आगे बढ़ाता है- ना कि अंधाधुंध कोई और बनने की चाहत।
जैसे इंडियन क्रिकेट टीम में कई प्लेयर है कोई बॉलर तो कोई बैटर है।
और अधिकतर -ज्यादातर अधिक सैलरी बैट्समैन को दिया जाता है।
और वो ही अधिकतर लैम-लाइट में होते हैं। पर सोचों यह सोच के कोई बॉलर बैटर बनना चाहें।
और बन -भी जाय तो क्या वो टीम में जगह बना पायेगा।शायद हां, कभी-कभी यह हो सकता है पर सिर्फ कभी-कभी ही।
रोहित शर्मा बैटर है – विराट भी है- शिखर भी है- धोनी भी है।
कहने को तो ये सब बैटर ही है- एक ही काम करते हैं।
पर इनका नाम सुन आपके दिमाग में क्या एक ही छवि पनपती है।
नहीं-ना। इसलिए हमें हम बनने की कोशिश करनी चाहिए ना कि कोई और।
(धन्यवाद)
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जिद्दीयाया- चांद 🌙
जिद्दीयाया- चांद 🌙
जिद्दीयाया- चांद 🌙
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !