बिना धब्बे का चांद
बिना धब्बे का चांद
बात तब की है-जब अमावस्य चांद के हिस्से नहीं आई थी। इंसानियत तो छोड़ो आदिमानव का अंश तक जमीन पर नहीं पनपा था।
चांदनी इसकी लटों में थी- रवानी बातों में और खुशहाली उसकी हर सांसों में।
जब भगवान चांद पर विराजते थे ,उसी दौरान एक दिन भगवानों की सभा में देवराज इंद्र किसी असूर पर क्रोधित हो गए।
वे सारे असुरों का विनाश कर देना चाह रहे थे, क्योंकि उनमें से किसी ने चांद पर अधिकार करने की चेष्टा की थी।
उस चांद पर जो देवताओं का था। दरअसल बात यह हो गई थी, कि चांद की राजकुमारी चांदनी
अपनी खूबसूरती पर कुछ ज्यादा ही गुरूड़ करने लगी थी। और देवताओं के निवास के कारण अपनी शक्ति पर।
वो मुहावरा है ना कि ” चाय से ज्यादा गर्म- उसकी केतली होती है!” सों- ही इनके साथ था।
खूबसूरती बचपन से और सबके प्रिय होने के कारण लाडली होने कारण, गुस्सा नाक पर था, और घमंड सिर माथे पर।
इसी कारण वह सब को छेडझती- सताती घूमती रहती। काला अमावस्य उसको फूटी आंख नहीं सुहाता था।
इसी कड़ी में छोड़ दी थी उसने अमावस्या की बेटी को, दुश्ती हुई यह कहते हुए की” ये कहां की महारानी काली- कलूटी सी”
इसी का बदला लेना अमावस्या ने हमला कर दिया चांद पर। इसी वजह से देवराज क्रोधित थे असूरो पर।
युद्ध हुआ बड़ा भयंकर। सुर-असुर दोनों के क्रंदित हो रहे थे, और अंत में जैसा होता आया है
असुरों को घुटने टेकने पड़े देवताओं के आगे। और जैसा कि देवों के देव महादेव का अधिकार सबको है।
अमावस्या के उनके पास जाने पर उन्होंने बोला ” हे देव और असूरो , मेरा आप दोनों पर ही समान अधिकार है।”
अमावस्या की बेटी ने पूछा शिव से कि क्या मेरा कालापन मेरी कमजोरी है।और उसका गोरापन उसकी ताकत।
शिव मुस्कुराए और बोले,” काला और गोरा दोनों सिर्फ रंग है। कोई ताकत या कमजोरी नहीं।”
तो चांदनी मुझे चिढ़ाती क्यों है? और देव हमसे दूर भागते क्यों है?
शिव मुस्कुराए और बोले,” ये काले को दोष समझते हैं-इसीलिए।
तो इस पर अमावस्या की बेटी बोली कि क्या सच में हम दोषपूर्ण है?
शिव मुस्कुराए और बोले मेरा बदन नीला है । मेरी गर्दन नीली है। गोरा नहीं क्योंकि इसने विश पी है।
इसका मतलब क्या मैं कमजोर हूं? रात्रि काली है। कोयल भी काली है। कौवा भी काला है।
समुद्र का तल जिसने समुद्र को धारण किया है वह भी काले हैं। विष्णु श्याम(काले) है।
तो क्या वह कमजोर है? वही जो तारे इतने गोरे हैं। क्या दिन में वह कहीं दिखते हैं?
वो विष जो श्वेत है क्या कोई उन्हें छूता है? जो सबूत हैं कि कोई कमजोर और बलशाली नहीं।
सब विशेष है अपनी-अपनी स्थान पर। काली रात आराम है- प्रतीक है काम से थके हारों का पुकार का।
गोरा दिन थका देता है- इंसान को। रात इंसान को इंसान बनाता है। श्वेत- कृष्ण रंग है।
यौवन- रूप सौंदर्य का प्रतीक नहीं- यौवन ऊक सोच है। और सोच सूर-असूरो की जीवन शैली है।
अगर यह काले को गलत या दुश्मन मानते हैं, तो कहीं ना कहीं वह सत्य हैं।
क्योंकि वह काले से डरते हैं।(गलत डर का अभिप्राय है)।
अपने आधार की नींव को जानने से डरते हैं। इसीलिए काले से दूर भागते हैं।
पर उन्हें पता नहीं वो तल जो अंधकार में है। समुंद्र का अगर वह हट गया- गोरे से जल के तो सारे संसार की उत्पत्ति कैसे होती?
काला रंग है जो कभी बदलता नहीं। वह स्थाई रहता है। और अगर किसी को सच में देव बनना है।
तो उन्हें अपने स्थाई डर को समझना पड़ेगा। सहारा मांगना और देना पड़ेगा। जैसे मैं हूं आदि भी- अनंत भी।
डर भी -निडर भी, दुख भी- सुख भी। इसलिए मैं महादेव हूं। तुम्हारा कालापन कोई कमजोरी नहीं। वरदान है।
तुम आराम हो। तुम ही हो जिसके कारण चांद और देवताओं की जरूरत है। तुम कमजोर नहीं- तुम सर्वशक्ति हो।
और रही चांदनी की बात तो वह ही दंड की पात्र है। और उसको मैं यह श्राप देता हूं कि वह थोड़ी काली हो जाए-ताकि उसमें स्थायित्व आए।
चांद उसके पिता होने के नाते कई सारे अनुनय विनय के साथ अपने माथे वह श्राप ले लिया।
और बिना धब्बे वाला चांद- धब्बे वाला हो गया। जो चांद को अब एक अलग पहचान देती है।
लोगों को कहानी, बच्चों को मामा, और मांओ को बहू देती है। जो पहले चांद के सिर्फ गोरे होने से नहीं हो सकता था।
क्योंकि इसने गोरे को देखा नहीं जाता। क्योंकि उसमें कोई कृति और अकृति नहीं होती।
पर उस धब्बे ने हर मनुष्य को अपनी सोच को खरोचने का मौका दिया है।
इसलिए चांद और ताकतवर हो गया है- क्योंकि उसे स्थायित्व और अमावस्या का साथ मिल गया है।
जो उसे दुनिया की नजरों से भी बचाता है- और कईयों को ख्वाब सजाता है।
और चांदनी अब झुकना सीख गई है। उसके लिए गोरा और काला काला होना मात्र एक रंग है।
काला होना कोई पाप नहीं। समझना कोई गलत नहीं। पर रुक जाना महापाप है।
नीलकंठ इसलिए नीला है क्योंकि उन्होने विष पिया है। जिन्होंने पिया ही नहीं उनके- नीलकंठ कैसे हो सकते हैं?
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !