जलते-सायें
कल रात थोड़ी लेट हो गई थी। सुनसान रास्ता था और आसमान काला-बहुत काला था।👇
तारों से भरा आकाश उसमें चांद अपनी छवि छुपाए तो आधी फैलाए था। रास्ता शांत, सड़क पर चार-पांच लोग और हम।
मुस्कुराते हुए गुनगुनाते हुए कभी इधर तो कभी उधर देखते हुए। जा रहे थे ऑफिस से घर।मन में सवाल था और होठों पर मुस्कान।
सवाल यही कि मां बोलेगी कि इतनी लेट क्यों कर दी? और पिता चुप-चाप अपने कमरे में, बिस्तर में लेट जाग रहें होंगे।
और बीबी वो वहीं सवाल दोहरायेगी कि तुम्हें कभी फुर्सत मिलती है कि नहीं? काम से? जब देखो काम-काम-काम! और बच्चे !
बच्चों का क्या है। कुछ भी नहीं। क्यों? क्योंकि वह तो सो चुके होंगे। इंतजार करते-करते वक़्त बड़ा लंबा जान पड़ता है ना।
इसलिए वक्त से थक-करके इस उम्मीद के साथ की कल सुबह देख लेंगे। और मुस्कान होठों पर इसलिए थी
क्योंकि चलो घर लेट ही सही मगर घर तो जा रहे हैं। वह भी अकेले मस्ती में। खुशहाली में।
मां और बीवी इसलिए जाग रहे होंगे क्योंकि उनको पता है इंतजार करेंगे तो वक्त लंबा लगोगा ।
और काम में व्यस्त रहेंगे तो समय-समय कहां लगेगा। जैसे सुबह से शाम करते हैं किचन-से-घर घर-से-किचन।
वैसे ही शाम से रात करते हैं। वक्त से आंख मिचोली खेलते हैं, वक्त पर ध्यान ना दे करके।
मैं अभी घर पहुंचने से यही 20-15 कदम दूर था।तो मेरा ध्यान गया मेरे पीछे चल रहे साये पर,
जो अब लाइट मेरे पीछे होने के कारण आगे आ खड़ा हुआ था।👇
मैं समझ गया मैं अकेला नहीं चल रहा साय भी मेरे साथ है। साय कौन? यह मैं आप-पे छोड़ता हूं!
पर इन सायो़ पर ध्यान देना। इनके साथ वक्त गुजारना। अंधेरे में दिखते नहीं मगर होते जरूर है।
तो इनका साथ कभी मत छोड़ना क्योंकि यह आपके लिए आपके साथ जलते हैं।
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(जलते-सायें)
(जलते-सायें)
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !