बिमारी
सौ दर्द थे! मगर फिर भी कह रहे थे, मै ठिक हूँ!
नहीं मुझे जाने-दो, मै ठिक हूँ!
घर पर रहुँगा तो बिना कुछ किय-ही बिस्तर पर पड़े-पड़े बिमार हो जाऊँगा।
चलो! जाने दो ! काम पे! मैं ठिक हूँ!
जिद्द उनकी मान-ली गई । और वो पहँचे काम पे!
शाम को लौटे तो कुछ फूर्ती थी मगर आते ही-
बिस्तर पर पड़ गय | पूछा गया क्यों बोला था ना काम पे मत जाओ;
अब क्या हुआ निकल गई सारी ऊर्जा!
उन्होने बोला अरे!
मै बिमार नही थका हुआ !
मै ठीक तो तभी हो- गया था! जब मेरे मन ने –
कह दिया – तु ठीक है । बस थकावट-
ज्यादा है, जो जरा सा सो लेने में
ठीक हो जायेगी !..वरूण
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बिमारी
ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !