वो पागल है (मंगु)…😁😄😆
अरे !
देखा तुमने,” मैनें कहा था ना – वो पागल है।”
” हाँ !
सच में !
तुम ने बिल्कुल ठीक कहा! वो सच में पागल है।”
हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ ! 😆😄😆
“वो बचपन से ऐसे ही है।”
यह उक्तियां दो सज्जन स्त्रीयाँ- मंगू के पड़ोस में रहने वाली मंगू के बारे मे कह रही थी।
और सिर्फ यहीं दो नहीं बल्कि पूरा समाज मंगु की ही देखभाली (कहने को) में जुटा रहता।
मंगु जन्म से कुछ मानसिक कमियों के साथ पैदा हुआ था। इसका शरीर तो बड़ा हो गया था।
पर दिमाग बच्चो वाला था। उसको अच्छे-बुरे का फर्क पता नहीं था। बस जैसा देखता –
वैसा करने की कोशिश करता। पर हर काम से वो लोगों के बीच हस्सी का पात्र बनता।
क्या आस-पड़ोस, क्या गाँव हर कोई मंगु के बारे में कुछ कहता और सुनता नजर आ जाता।
कि – तुम्हे पता है ‘आज मँगु ने-ना,
हाँ ! हाँ !
क्या ?👂
एक अदमी को दाँते काट लिया।”
अरे बस।
कल तो उसने-इससे भी बुरा किया था? बिल्कुल पागल है वो – पागल।
उसे तो पागलखाने में होना चाहिए। ना जाने हमारे बीच क्या कर रहा है।
इतना बड़ा हो गया है ” पर अक्ल नाम की चीज़ नहीं है- उसमें।
पर मंगु को इस बात से उतना ही फर्क पड़ता – जितना उसके समाज को मंगु समझ में आता।
यानी कि मंगू उन्हें पागल समझता और समाज वाले मंगू को। मंगु कुछ कहता नहीं था-
चाहे लोगों उसे कितना भी डांट ले- या मार ले।या उनके मम्मी -पापा को उल्हने दे -दे।
क्योंकि उसे समझ में बस हाओ-भाव दिखते थे – जो क्या कहने की कोशिश कर रहे हैं –
ना समझ आता था – ना जानना चाहता था – वह बस मुस्कुराता था।
एक दिन मंगू ने किसी बच्चे का खिलौना छिन- गलती से तोड़ दिया।
शायद खेलते-खेलते टूट गया था। खिलौना वैसे भी पुराना हो गया था।
और बच्चे की मां तो मां होती हैं। वो चढ़ आई। क्यों-रे मंगु! जब तेरे को अक्ल-वक्ल नहीं है
तो चुपचाप घर में क्यों नहीं रहता। उसके मां-बाप से,”आर्य समाज में रहने वाला नहीं पागलखाने में रहने लायक है।
इतना बड़ा हो गया है, पर फिर भी बच्चों के खिलौने से खेलता है। हाथी कहीं का !
आप लोग इसे घर में रखे क्यों हो ? रखना ही है- तो हाथ-पैर बांध के रखो।
और काफी देर तक मंगु को और उसके माता-पिता को सुनाते रहती है।
इस पर मंगू के पापा ने वह खिलौना दुकान से खरीद के दे दिया।
और गुस्से में ले जाकर मंगू को घर में बंद कर दिया। और भगवान को कोसने लगे
उसकी मां का तो रो-रो के आंखें लाल हो गई थी। पर मंगू अभी- भी मुस्कुरा रहा था।
वह बच्चा जिसका खिलौना टूटा था, उसे नया खिलौना मिल गया था। इसलिए वह भी मुस्कुरा रहा था।
बच्चे की मां का सारी रात सर में दर्द रहा। पति के के पूछने पर बोली यह सब किया धरा उस पागल हाथी का है।
शाम को जब उसका पति वापस लौटा था तो अपने बच्चे के लिए नया खिलौना वह भी लाया था।
क्योंकि उसको भी पता था कि उसके बच्चे का खिलौना पुराना और खराब हो चूका था।
पर मंगु के मां-बाप नया समझदार मंगु नहीं ला सकते थे। और ना नया खिलौना मंगु के लिए।
क्योंकि मंगु को अपना और पराया खिलौना नया-पुराना खिलौना समझ में ही नहीं आता था।
पर मांगू के मां बाप अपने बेटे के लिए नया खिलौना नहीं ला सकते थे।
क्योंकि उसको मुस्कुराने के लिए किसी को खिलौना लाने या बनाने की जरूरत नहीं होती।
मंगू अभी-भी मुस्कुरा रहा था। मंगू के लिए कोई भी चीज का खिलौना इसका-उसका नहीं था।
बल्कि सबका था। जो उनके संग जब चाहे खेल सकता था और खेला करता था।
पर उस औरत के सिर में दर्द नया खिलौना ना ठीक कर पाया।
कल सुबह समाज के जुबान पर मुस्कान थी की मंगु को तो पागलखाने में रहना चाहिए यहां हमारे बीच नहीं।
हां! मैं भी कहता हूं उसे उनके बीच नहीं बल्कि उस चारदीवारी के बीच गेट पर लिखे पागलखाने में रहना चाहिए।
जहां ना कोई अपना होता है ना कोई पराया और ना ही किसी का दिल दुखा कर खुद को समझदार सज्जन समझने वाला समाज।
जिनकी सीमा एक चारदीवारी है। और इधर-उधर की बात और खुद को समझदार समझने के लिए एक मंगु की तलाश।
इससे अच्छा वह पागल खाने में रहता।
असली पागलों से दूर।
….. वरूण
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ज़िन्दगी भर – ज़िन्दगी के लिए !