अपनी संस्कृति को बचाना ?
इससे पहले कि स्टार्ट करें आओ एक छोटा सा वाक्यांश पढ़ते हैं 👇
(एक छोटा काल्पनिक काव्यांश)
देवतंग्य ऋषि का आश्रम। वह आश्रम जो विश्वविख्यात था। अपने ज्ञान-कौशल और व्यवहार पूर्ण आदर भाव के लिए।
वहां एक विदेशी अपने यहां से उनके आश्रम आता है। शिक्षा की प्राप्ति की अभिलाषा से।
उसके देश में बहुत ठंड हुआ करती थी बारहों मास तो वह गर्म कपड़े लेकर ही आता है।
क्योंकि उसे यहां का मौसम का अंदाजा नहीं था। और वह अपने वहां से पहला व्यक्ति था,
जो देवतंग्य ऋषि के आश्रम के लिए आमंत्रित हुआ था। वह बड़ी मुश्किल से पसीने से तरबतर पहुंचा आश्रम।
उसका स्वागत सत्कार हुआ और उसका वहां रहने की व्यवस्था की गई। और जब देखा कि उसके पास सिर्फ गर्म कपड़े है ।
तो देवतंग्य ऋषि ने पूछा बेटे तुम हल्के वस्त्र लेकर नहीं आए। तो उसने बोला नहीं गुरुदेव।
तो देवतंग्य ऋषि ने उसे हल्के और गर्मी के मौसम में प्रयोग होने वाले वस्त्र उपलब्ध करवाए।
वह विदेश शी था उसे इस देश का कुछ पता नहीं था। तो वह ऐसे ही घूमने के चक्कर में बाहर निकलता है।
दोपहर में तो उसे लू लग जाती है।
क्योंकि वह ठंडे इलाके का निवासी था। और लू का नाम उसने सिर्फ सुन रखा था।
मगर उसको पता नहीं था कि इसकी उसके लक्षण क्या होते हैं। तो जब उसे गर्मी लगी और बुखार आया और दस्त हुए;
तो उसने वह दवाई खाई जो उसके वहां प्रयुक्त होते थे।
क्योंकि वह सफर में उन्हें अपने साथ लेकर निकला था। मगर बुखार तो उस वक्त ठीक हो गया मगर फिर वापस लौट आया ।
दो-तीन बार उसने दवा लिया। उसे लगता कि मैं अब ठीक हो जाऊंगा मगर नहीं।
जब ऋषि को उसकी दशा के बारे में पता चला तो उन्होंने कुछ जड़ी बूटी दी और कुछ घंटों में वह ठिक हो गया।
और बोला गुरु जी मैंने जो दवाई खाई। उन्होंने मुझे ठीक नहीं किया।
जबकि मैं जब से पैदा हुआ और बीमार पड़ा तो इन दवाओं ने मुझे ठीक कर दिया।
मगर इस बार क्यों नहीं! तो देवतंग्य ऋषि ने बोला इस बार तुम्हारे गांव की हवाओं ने नहीं;
यहां की हवा ने बिमार किया था। तो इलाज भी यही के दवा से होगा ना। तो वह बोलता है ठीक है गुरुजी।
मैं समझ गया और जैसा आपने मुझे बताया अब से दोपहर में निकलने से पहले मैं पानी पीकर भी निकलूंगा और प्याज खाकर भी।
👆इस ऊपर की कहानी से अपने क्या सिखा?
चलो एक और बात पर मंथन करते हैं। जब प्रभु श्री राम रावण से लड़ रहे थे।
तब नाभि में मारने को किसने कहा था! क्या संकट-मोचन ने, लक्ष्मण या फिर विभीषण ने।
ऑफकोर्स विभीषण ने कहा था। क्योंकि वह रावण का भाई था। वह उसके राज जानता था।
इसलिए कहते हैं कि अपनी संस्कृति और मातृभाषा को जानो- उनको महत्व दो।
क्योंकि उसमें ही तुम्हारे सवालों के जवाब मिलेंगे।
क्योंकि आप उन्हीं के वंशज हैं। जिनकी वह भाषा थी।
उसी जमीन पर उसी जलवायु में रहते हो, जिनमें वह रहते थे।
उन्हीं तकलीफों का सामना भले ही नय रुप में करते हो, मगर रक्षा का उपकरण वही से मिलता है।
क्योंकि वह हमसे पहले उन से लड़ चुके हैं।
उन्होंने उन का तरीका भी उसी भाषा में लिखा लिखा होगा ना जो उस समय बोली जाती होगी।
इसलिए अपने भाषा धर्म और संस्कृति पर जोर देना चाहिए।:-
क्योंकि बिना भूत के वर्तमान नहीं हो सकता और एक ही तरीका हर जगह काम नहीं आता।
और सबसे बड़ी बात:👇
हमारी मां से ज्यादा दूसरों की मां हमें कभी भी नहीं समझ सकती, ना ही चाह सकती है- ना ही वह रो सकती हैं
और ना ही भूखा सो सकती है। इसलिए अपनी मां को महत्व दो।
उन्हें बहू के कारण वृद्ध आश्रम मत भेजो वर्ना नियति और समय वही देते हैं जो आप अपने खेत में बोते हैं।
_________*Aur ⇓ Seekhe*_________
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(अपनी संस्कृति को बचाना ? )
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