शर्म
शर्म : एक हिंदी कहानी |
शर्म सबसे ज़्यादा – शर्मसार करती है – नियम को |
और शर्मसार हुआ सबसे ज़्यादा सहारा लेता है क्रोध का !
बात आज उस विषय की है – जो हर किसी की ज़िन्दगी का वो पल है – जो आदमी कभी नहीं चाहता –
नहीं सोचता की हो – वो बात है सबके सामने शर्मसार होने की|
ये वो विषय है जिसके कारण युद्ध हो गए |
शहर-तो-शहर देश तबाह हो गए | सिर्फ इसलिए की इंसान को अपनी शर्म नहीं पचती और सबसे ज़्यादा
महसूस होती है | राजा – महाराजा जंग का सहारा , जन – मानस क्रोध का सहारा लेते है शर्मसार होने पर |
शर्म चीज़ ही ऐसी है | जो सबसे ज़्यादा खुद ही को महसूस होती है |
मैं खुद कई बार इसका स्वाद ले चूका हूँ |
और इसलिए मालूम है – सबके सामने हंसी का पात्र बनाना या लज्जा का कैसे लगता है |
पर आज जो वृतांत सुनाने वाला हूँ –
वो मेरा नहीं है – ना ही मेरी दिमाग की उपज है |
मैंने भी सुनी है – वो भी अपने पिता से सुनी है | क्या सुना ? सुनना चाहते है |
तो चलो-चलते है मेरी शब्दों की बनी – बनाई दुनिया में | जो मैंने बस गढ़ दी है |
पिता जी बमुश्किल मुस्कुराते हुए मिलते है – पर जब आज ये वृतांत बता रहे थे तो मुस्कुरा रहे थे |
उन्होंने बताया की जहां वो काम करते है – वहां का एक दूसरा कर्मचारी कल कोट पहन कर आया था |
पर उसके पीछे चाप यानिकि चिमटी /कलउचर लगा हुआ था | तो जब उसे इसकी वजह से टोका गया
तो उससे न रहा गया और उसने वो चाप फटाक से निकला
और नीचे पटक – पटक के लात से कुचल के
तोड़ दिया क्युकी उसको लोगो का हसना ना पचा क्युकी लोगो को शर्म भले ना आये – मगर लोग हसे तो
क्रोध अवश्य आता है | क्युकी इंसान नहीं चाहता की वो सिर्फ मनोरंजन का विषय रह जाय |
जो स्वाभाविक स्वभाव है मनुस्यो में |
तो इंसान जब हसी का पात्र बन जाता है – तो उस समय वो साफ़ – साफ़ इंकार करता है और
कहता है की ये सब अंजाने से या मुझे पता नहीं चला कैसे हुआ का जो तर्क देता है |
वही तर्क उस कर्मचारी ने दिया जो फिर बिल्कुल स्वाभाविक था और है | वो पेशे से माली था |
जो बगीचों को संवारने के लिए ना-जाने क्या-क्या करता और लगता है | पर वो उसका काम है |
पर ये उसका वो पल था – जो वो उस दिन महसूस नहीं करना चाहता था – और ना कभी चाहे |
पर वो चाप टूट चूका था |
जो उसके अनुसार किसी ने मज़ाक में बिना उसके सहमति के लगा दिया था |
जो लोगो के हसी के पात्र बनने के बाद उसके क्रोध की सहमति से टूट गया |
जिसके बाद उसका वो कोट जो पहले फिट दीख रहा था – फ़ैल गया पर उससे कोई फर्क नहीं |
क्युकी उसने अपने हसी के पात्र बनाने वाली वस्तु को लात से दबा दिया था |
मेरी किताबे :-
हाथ जोड़ ली – और शक्ति छोड दी : समझ ज़रूरी है! (Hindi Edition)
अंधेरों का उजियाला (Hindi Edition) Kindle Edition
आत्म-शक्ति! (Hindi Edition) Kindle Edition
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शर्म : एक हिंदी कहानी |
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