राम – राम – जपना पराया माल अपना!

भगवान की कृपा बगल वाले पर थी जब की भगत कर्मवीर था !ऐसा क्यों ?

 

 

अयोध्या से निकाले गए राम – सिंहासन पाने की उम्र में !

पर लोग समझते नहीं इतनी से बात – 

इंसान तो इंसान भगवान भी तब तक नहीं पूजे जाते जब -तक वो वनवास न काटे ! 

 

 

 

काम और नाम सब चाहते है | पर मेहनत से जी भी लोग चुड़ाते है |

“राम – राम जपना पराया माल अपना” तो इन सब की कामना भी रहती है |

ये बात भी एक ऐसे ही  दुनिया में पैदा हुए इंसान की है | नाम कर्मवीर | गांव कर्मप्रधान |

संस्कार राम – राम | ग्रन्थ रामायण और महाभारत – पूजनीय महाभारत के कृष्ण| उपदेश गीता का |

रोज मंदिर के पांच बार दर्शन – भगवन के पाओ माथा कई बार |

पर इससे ज़्यादा भगवन   की किरपा बगल वाले पर |

इससे ये इतना दुखी हो गया की – धर्म बदल लिया | उपदेश बदल गए – आइडल बदल गए |

पर फायदा कुछ नहीं – बस धर्म परिवर्तन पर कुछ रूपए मिल गए थे पर – वो भी कब तक मिलते |

फिर धर्म बदला – आइडल बदला | पर  हालत वही – क़िस्मत ही ख़राब है | भगवन होते ही नहीं |

अब इसके मंत्र  बन गए थे और अंत में बन गया नास्तिक |

भगवन की किरपा पर अब इसको भरोसा नहीं था |

ना किसी धार्मिक स्थान पर अब जाता था ना पांच बार नवाज़ ही पढता था |

 

 

कुछ ही सालो में ये बगल वाले से ज़्यादा अमीर बन गया | पहचान मिल गया |

तब इसने एक अखबार में इस्तिहार लिखवाया |

जिसमे इसने लिखवाया  की  भगवन की “ कृपा पूजा करने से जितना नहीं मिलता –

उतना भगवन के मार्ग दर्शन पर चलने पर मिलते है | मै राम-कृष्ण , और दूसरे धर्मो के

आदर्शो को पहले इसलिए मानता था क्यों की मैंने देख-सुन रखा था की भगवन अपने

भक्तो को सब चीज़ देते है | और सुदामा को सारा शहर दिलवा देते है | पर मैं ये भूल गया था –

“ ऐसे फटे बिवाइन सो – जाने को आयो बसों ब्राह्मण , बतावत अपनों नाम सुदामा |

“ और गीता का संदेश कभी नहीं ली – बस इस लिए उठता था की उससे की भगवन का प्यारा हो जाऊ |

यानी की ऊपर जाने की जल्दी नहीं – ऊपर पहुंचने की  मंशा से |

पर एक लाइन जो गीता की जिन्होने छुई तक नहीं है वो भी जानते है पर –

मै भूल गया था वो ये की “कर्मण्यधिकरस्तु – मा फलेसु कदाचना “|

 

भगवन कृपा अर्जुन पर भी  तभी करते है –  जब अर्जुन उनके पास जाते है –

जब अर्जुन उस सामर्थ्य को धारण करते है |

राम-राम जपने से भी वही काम पूरे होते है जो सफर में हो –

वो नहीं जो तुम बैठे – बैठे  चाहते हो | और जब राम भगवान वनवास काटने का यात्रा कटाने का संदेश खुद देते है –

कृष्ण जो  खुद और औरो  को बचाने के लिए उंगली पर गोवर्धन उठाते है |

वो तुम्हारी कायरता को उनकी प्रति समर्पण समझ लेंगे | तुम ये मूर्खता को मान कैसे लेते हो |

भगवान की पूजा काम की पूर्णता के लिए या शुरुआत के लिए होती है | काम वो आकर करे इसके लिए नहीं |

कर्मवीर बनो – पर सिर्फ नाम से नहीं , कर्म से भी | 

और है सुदामा तुम हो नहीं और अगर बन भी गए तो – कृष्ण तुम्हारे पास खुद नहीं आएंगे –

तुम्हे जाना पड़ेगा | पैरो में बिवाइन – काटो – तपन से लाने पड़ेंगे | तब तुम्हारे लिए कृष्णा भागते आएंगे |   

"</p

 

राम – राम ! 

नमस्कार | 

 

कर्मवीर -काम चोरो पर कभी-भी  कृपा नहीं करते !

राम – कृष्ण कर्म वीर है – और बाकी दर्शन के आइडल भी |

तुम उन्हें अपनी कायरता दिखाकर उन्हें लुभा नहीं लोगे | 

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