प्रेरणादायक हिंदी कविता–
हवाए कब से बह रही हैं कुंठाए कब से बढ़ रही है -
सुनो एक कहानी सुनाता हूं –
एक दशानन था दस सर थे उसके –
बड़ा पंडित – बड़ा शक्तिशाली –
स्वर्ण की लंका ले ली बड़ी चतुराई से –
दान में शिव से –
देवताओं – ग्रहों को रखता था –
अपने पांव के नीचे उचित-अनुचित जो भी करता –
कोई कुछ नहीं कहता था उससे –
अत्याचार का वह स्वामी था-
उसके नगर के बच्चे-बच्चे भक्षक थे –
इतना बड़ा वो रावण था –
ग्रह चुप- देव चुप –
कोई नहीं लड़ता था उससे |
तब जाकर विष्णु ने राम अवतार लिया-
वनवास काट रहे थे-
तभी माता सीता का हरण हुआ|
किया होगा उसने कितनी बार भी यह दुस्साहस-
पर उसका कोई नहीं करता था विरोध-
वनवासी तुच्छ मानव जान-
ले आया सठ जगदंबा को हर –
तब तृणधारी सीता ने रावण को ललकार दिया-
उसके लंका को ठोकर मार हवाओं का रुख मोड़ दिया-
बाकी तो तुम सब जानते ही हो-
तुम सोच रहे होंगे यह कहानी क्यों सुनाई मैंने?
तो सुनो हवाओं का विरोध करने के लिए –
विष्णु को भी नर रूप लेना पड़ा था-
शिक्षा यहीं पर पाई आकर –
ज्ञान यहीं पर मिला उन्हें –
सीता भी यही पर पाई आकर –
और युद्ध भी पगधारी राम ने किया था –
कुबेर रथ धारी रावण से –
वो अवतार हो सकते हैं-
पर थे नर अवतार में-
शक्तियां कह सकते हो-
पर सीख यहीं पर आकर पाए –
तो तुझमें -मुझमें में कौन सी कमी है?
क्यों हवाओं की दिशा में उड़ रहा है-
मृत डाल से बिछड़े पत्तों की तरह-
मृत मछली की तरह पानी के साथ –
पानी के बहाव में |
भय है कि हार जाएगा –
तो सुन लड़कर हारने वाले –
वीर कहलाए- हिम्मतगर कहलाए-
पर घर में बैठे वाले न जाने क्या कहलाय ?
पद्मिनी महारानी जोहर की पवित्र अग्नि बन गई –
लक्ष्मीबाई मर्दानी कहलाई –
हवाओं के साथ गति और कुशल मंगल हो सकता है –
पर प्रदूषित हवा हो तो -समझदार हो खुद समझ जाओ|
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(प्रेरणादायक हिंदी कविता)
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